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छठवीं ढाल
१६६ पूर्व पुण्यके उदयसे प्राप्त हुए वैभवमें सन्तोष कर और विषयकषायोंकी प्रवृत्तिको छोड़ कर आत्म-हितमें लग जा । जिन परपदार्थों में तू आसक्त हो रहा है, जिन पदोंके पानेके लिए तू रातदिन एक कर रहा है, वे तेरे आत्माके पद नहीं हैं, उनके प्राप्त कर लेने पर भी तुझे शान्ति प्राप्त न होगी; अतएव उनको पानेकी आशा छोड़ कर आत्म-प्राप्तिके मार्गमें लग जा, जिससे कि तु अक्षय अनन्त सुखका धनी बन सके। मुक्ति पानेका अवसर बार-बार हाथ नहीं आता, अतएव इस दावको मत चूक, इसमें तेरा कल्याण है।
अब ग्रन्थकार ग्रन्थ-निर्माण का समय और आधार बतलाते हुए अपनी लघुता प्रगट करते हैं:
इक नव वसु इक वर्षकी, तीज सुकल वैसाख । कर्यो तत्व-उपदेश यह, लखि बुधजनकी भाख ॥१॥ लघुधी तथा प्रमादतें, शब्द, अर्थकी भूल । सुधी सुधार पढ़ो सदा, जो पायो भव-कूल ॥२॥ अर्थ-विक्रम संवत् १८६१ के वैशाख शुक्ला तृतीयाके दिन बुधजनकृत छहढालाका आश्रय लेकर मैंने यह तत्वोंका उपदेश करने वाला तत्वोपदेश या छहढाला नामका ग्रन्थ बनाया है । इसमें मेरी अल्प बुद्धिसे, या प्रमादसे कहीं शब्द या अर्थकी भूल