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छठवीं ढाल
१६५ २ दर्शनावरण कर्मके क्षय होनेसे अनन्तदर्शन, ३ वेदनीय
अत्र्यावाचं गुण ४ मोहनीय ।
क्षायिक सम्यक्त्व । ५ आयु
अवगाहन गुण ६ नाम
सूक्ष्मत्वगुण ७ गोत्र
अगुरुलघुगुण .5 अन्तराय , , अनन्तवीर्य
यहाँ इतनी बात विशेष जाननी चाहिए कि अनन्त चतुष्टयमें जो अनन्त सुख नामका एक गुण गिनाया गया है, वह भी मोह कर्म के नाशसे प्रगट होता है । कुछ प्राचार्य सिद्धोंके आठ गुणोंमें क्षायिक सम्यक्त्वको गिनते हैं और कुछ आचार्य अनन्त सुखको। सो इसमें कोई भेद नहीं जानना चाहिए, क्योंकि मोहनीय कर्मके दो भेद हैं-दर्शनमोहनीय और चारित्र मोहनीय । इनमेंसे दर्शन मोहनीय कर्मके क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व गुण प्रगट होता है और चारित्रमोहनीय कमके क्षयसे अनन्त सुख प्रगट होता है। विभिन्न आचार्योंने सिद्धोंके आठ गुण गिनाते हुए मोहकर्मके नाशसे उत्पन्न होने वाले दो गुणोंमें से किसी एक गुणको बतलाया है, सो यह अपनी अपनी विवक्षा है।
अब ग्रन्थकार सिद्ध अवस्थाका वर्णन करते हैं: