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चौथी ढाल
१२५ १ सामायिक शिक्षाव्रत-हृदयमें समता भाव धारण करके प्रातः काल, मध्यान्ह और सायं काल इन तीनों संध्याओंमें सामायिक करना सो सामायिक नामका शिक्षाव्रत है । सामायिकका उत्कृष्टकाल ६ घड़ी, मध्यम ४ घड़ी और जघन्य २ घड़ी मानागया है । सो जिसकी जैसी शक्ति हो, उतने समयके लिये पाँचो पापोंका मन, वचन, कायसे बिलकुल त्यागकरके प्राणिमात्र पर समता और मित्रताका भाव रखते हुए आत्मस्वरूपका चिन्तवन करना चाहिए । सामायिकके कालमें ॐ, 'सिद्ध' आदि अनादि मूलमंत्राक्षरोंका जाप, स्तोत्रपाठ, सिद्ध भक्ति आदिका पाठ भी किया जा सकता है, पर यह सब परम शान्तिसे करना चाहिए । सामायिक एकान्त शान्त और उपद्रव-रहित स्थानमें करना चाहिए।
२ प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत-एक बार भोजन करनेको प्रोषध कहते हैं । एक मासमें दो अष्टमी और दो चतुर्दशी होती हैं, इन्हें पर्व माना गया है । इन चारों ही पर्वोके दिन सर्व पाप-आरम्भ छोड़ कर एकाशनपूर्वक उपवास करने को प्रोषधोपवास कहते हैं । यह प्रोषधोपवास उत्तम १६ पहर का, मध्यम १२ पहरका
*आसमयमुक्ति मुक्त पंचाधानामशेषभावेन। सर्वत्र च सामयिकाः सामयिकं नाम शंसनि॥
वकाचार "चतुराहारविसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः । ... सप्रोषधोपवासो यदुपोष्यारम्भमाचरति ॥
रत्नकरंडश्रावकाचार