Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

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Page 184
________________ छठवी ढाल १७६ ब्रह्ममें रमण करते हैं और इस प्रकार पूर्ण ब्रह्मचर्य महाव्रतका परिपालन करते हैं । विशेषार्थ - साधुगण हिंसा आदि पांचों पापोंके सर्वथास्थूल और सूक्ष्मरूपसे त्यागी होते हैं, अतएव वे निर्दोष पांच महाव्रतों का परिपालन आजन्म करते हैं। इस छंदमें प्रारम्भके चार महाव्रतों का वर्णन किया गया है, जिनमें तीन महाव्रतोंका स्वरूप सुगम है । ब्रह्मचर्य महात्रतका स्वरूप बतलाते हुए शील के जिन १८००० अठारह हजार भेदोंका उल्लेख किया गया है, इस प्रकार से जानना चाहिए स्त्रियां दो प्रकार की होती हैं चेतन स्त्री और अचेतन स्त्री चेतन स्त्री भी तीन प्रकारकी होती हैं -देवांगना, मानुषी और तिरश्ची । इन तीनों का मन, वचन कायसे गुणन करने पर (३ x ३ = 8) नौ भेद हुए । इन नवों भेदोंका कृत, कारित और अनुमोदनासे गुणन करने पर ( ६ x ३ - २७) सत्ताईस भेद हुए । इनको पांच द्रव्येन्द्रिय और पांच भावेन्द्रियोंसे गुणन करने पर (२७×५×५ = २७०) दो सौ सत्तर भेद होते हैं । इन्हें आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओंसे गुणन करने पर (२७०x४ = १०८०) एक हजार अस्सी भेद होते हैं । इन्हें अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलनक्रोध, मान, माया, लोभ इन सोलह कषायों से गुणा करने पर (१०८० X १६ = १७२८०) सत्तरह हजार दो सौ अस्सी भेद चेतन स्त्री सम्बन्धी होते हैं। अचेतन स्त्री

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