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छठवीं ढाल " अर्थ-वे मुनिराज चौदह प्रकारके अन्तरंग और दश प्रकारके बहिरंग परिग्रहसे दूर रहते हैं अतः अपरिग्रहमहाव्रतके धारी होते हैं। इस प्रकार पांच महाव्रतों का वर्णन हुआ। अब पांच समितियों का वर्णन करते हैं :- वे मुनिराज प्रमादको छोड़कर चार हाथ भूमिको देख-शोधकर चलते हैं सो यह ईर्यासमिति है । उन मुनिराजोंके मुखरूपी चन्द्रसे समस्त जगत्का सञ्चा हित करनेवाले, कानोंको सुख-दायक सब प्रकारके संशयोंके नाशक और भ्रमरूपी रोगके हरण करने वाले अमृतके समान वचन निकलते हैं । इस प्रकार वचनकी सावधानी को भाषा समिति कहते हैं । वीतरागी साधु उत्तम कुल वाले श्रावकके घर भोजन सम्बन्धी छयालीस दोषोंको टालकर तपको बढ़ानेके लिये रस आदिको छोड़कर आहार लेते हैं, शरीर पुष्ट करनेके लिए आहार नहीं लेते हैं। यह एषणा समिति है। वे साधु शौचके उपकरण कमंडलुको, ज्ञानके उपकरण शास्त्रको और संयमके उपकरण पीछीको देख-शोधकर ग्रहण करते हैं और देख शोधकर ही रखते हैं, यह आदान निक्षेपण समिति है। जीव-रहित प्रासुक स्थान को देखकर शरीरका मल, मूत्र,कफ
आदि छोड़ते हैं, यह पांचवी व्युत्सर्ग समिति है। ___ अब आगे ग्रन्थकार तीन गुप्ति और पंचेन्द्रिय-विजयका वर्णन करते हैं:सम्यक प्रकार निरोध मन वच काय आतम ध्यावते, तिन सुथिर मुद्रा देखि मृगगण उलप खाज खुजारते ।