________________
छठी ढाल
बन्धकार सकल चारित्रका वर्णन करते हुए सब प्रथम
पांच महाव्रतों का वर्णन करते हैं :
:
पटका जीवन इन सब विव दरव हिंसा टरी, रागानंद भाव निवारतें हिंसा न भावित अवतरी । जिनके न लेश मृषा न जल मृण तु विना दीयो गहैं, अठदश सहस विधशील घर चित्रह्म में नित रमि रहैं ॥ १
अर्थ- मुनिराज पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति ये पांच स्थावर काय और त्रसकाय इन पट कायिक जीवों की हिंसा का मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे त्याग कर देते हैं, इसलिए उनके सर्व प्रकारकी द्रव्यहिंसा दूर हो जाती है। तथा राग, द्वेष आदि विकार भावों के निवारण कर देने से उनके भावहिंसा भी नहीं होती । इस प्रकार वे पूर्ण अहिंसा महाव्रतका पालन करते हैं । उन मुनिराजोंके वचन लेशमात्र भी असत्य नहीं होते हैं, इसलिए वे परिपूर्ण सत्यमहात्रतके धारक होते हैं । वे विना दिए जल और मिट्टी तक को ग्रहण नहीं करते हैं, अतएव निर्दोष अचौर्यमहाव्रतका पालन करते हैं । वे अठारह हजार शीलके भेदोंको धारण करके सदा चैतन्य