Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ पांचवीं हाल निर्वाण को प्राप्त हए हैं। अतएव यह भावनाओंका ही माहात्म्य जानना चाहिये। ___ अब ग्रन्थकार इस ढालको पूर्ण करते हए आगे छठी ढालमें वर्णन किए जाने वाले विषयकी भूमिका-स्वरूप पद्यको कहते हैं:सो धर्म मुनिन करि धरिये, तिनकी करतूत उचरिये । ताकों सुनिये भवि प्राणी, अपनी अनुभूति पिछानी ॥१५॥ ___ अर्थ-सकलचारित्र-रूप पूर्ण-धर्मको मुनिगण ही धारण करते हैं, इसलिए आगे की ढाल में उन मुनियोंकी कर्तव्यभूत क्रियाओंका वर्णन किया जाता है । हे भव्य प्राणियो ! उन क्रिया ओंके उपदेशको सुनो, जिससे कि अपने आत्माकी अनुभूति हो सके। इस प्रकार मुनिधर्मके लिए साधक-स्वरूप बारह भावनाओंका वर्णन करने वाली पाँचवीं ढाल समाप्त हुई। पांचवीं ढाल समाप्त • मोक्खगया जे पुरिसा श्रणाइकालेण चार अगुवेक्खें । परिभाविऊण सम्मं पणमामि पुणो पुणो तेसि ॥८६॥ किं पल विएण बहुणा जे सिद्धा णरवरा मये काले। सिज्झिहहि जे वि भविया तज्जासह तस्त माहप्पं 101. चारस-श्रवक्ता।

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206