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छहढाला
ये भी उपभोग करते हुए के समान अनुभव करना सो अत्यनुभव नामका पाँचवाँ अतिचार है ।
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( ४ ) अतिथि संविभाग-शिक्षाव्रत के अतिचार:- साधु आदि अतिथिजनों के देने योग्य आहार को सचित्त हरे कमलपत्र आदिसे ढँक देना सो हरितपिधान नामका पहला अतिचार है । दानके योग्य अन्न, औषधि चटनी आदिको सचित्त पत्ते आदि पर रख देना सो हरित निधान नामका दूसरा अतिचार है । अतिथिं जनोंको भक्तिके साथ कर्तव्य बुद्धिसे दान न देकर लोक लिहाज से दान देना, दानमें आदर भाव न रखना सो अनादर नामका तीसरा अतिचार है । कभी कभी दान देना ही भूल जाना, नियत समय पर दान नहीं देना, आगे-पीछे देना सो अस्मरण नामका चौथा अतिचार है, इसे ही अन्य आचार्योंने कालातिक्रम नामका अतिचार कहा है । दूसरे दाताके दानको नहीं देख सकना, अपने दिये दानका गर्व करना कि अमुक पुरुष हमारे दानकी
•विषयविषतोऽनुपेक्षानुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषानुभवौ ।
भोगो. भोगपरिमा - व्यतिक्रमा पंच कथ्यन्ते ॥
" हरितपिधाननिधाने ह्यनादरास्मरणमत्सरत्वानि । वैय।ष्टत्यस्यैते व्यतिक्रमाः पंच कथ्यन्ते ।।
रत्नक०
रत्न क०