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छटाला राग-द्वेष छोड़कर सद्ध्यानमें तल्लीन होना और आत्मस्वरूपका चिन्तवन करना सो चारित्र कहलाता है । ये सब संवरक कारण हैं। उन्हें धारण कर हे अात्मन् तु आते हुए कर्मोको रोक जिससे कि संसार रूपी समुद्रमें तेरा आत्मारूपी यह जहाज छिद्ररहित होकर निरुपद्रव हो जाय । तू गुमि आदिका धारण करना कठिन मत समझ, उनका पालना अत्यन्त सरल है । देख पहले विकथाओंके कहने सुननेसे अपने आपको बचा, फिर परपदार्थोंसे ममताका नाता तोड़ और अपने स्वरूपकी भावना कर, गुप्ति आदि तो तेरे हाथमें स्वयं आजायगी । इस प्रकार बिना किसी क्ल शके प्राप्त होने वाले मोक्ष मार्गमें अपनी बुद्धिको लगा, बाहरी संताप बढ़ाने वाली वस्तुओं में क्यों मोहित हो रहा है। ऐसा जानकर जो बुद्धिमान् विषयोंसे विरक्त होकर कछुएके • संरक्ष्य समिति गुप्तिमनुप्रक्षापरायणः । तपः संयमधर्मात्मा त्वं स्या जित परीषहः ।।५८|| एवं च त्वयि सत्यात्मन् कर्मास्रतबनिरोधनात् । नारन्ध्रपोतवद्भया निरपायो भवाम्बुधौ ॥५६।। विकथादि-वियुक्तस्त्वमात्मभावनयान्वितः। ल्यक्तबाह्यस्पृहो भूया गुप्त्याद्यास्ते करस्थिताः ॥६०||
क्षत्र. लं. ११ * एवमक्लेशगम्येऽस्मिन्नारमाधीनतया सदा । श्रेयोमार्गे मतिं कुर्याः कि बाह्य तापकारिणि ॥६शा
क्षत्र० लं० ११