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पांचवी ढाल समान अपने आपको सदा संवृत रखते हैं उनके ही संवर होता है। ऐसा वार वार चिन्तवन करना सो संवर भावना है । इस भावनाके चिन्तवन करने से आत्मा कर्मोंके आस्रवसे बचने का प्रयत्न करता है और मोक्षमार्गमें लगता है। ____ अब निर्जरा भावनाका स्वरूप कहते हैं:निज काल पाय विधि झरना, तासों निज काज न सरना। तप करि जो कर्म खिपावै, सोई शिवसुख दरशावै ॥१॥ .. अर्थ-अपनी स्थिति को पूरा करके जो कर्म करते हैं, उनसे
आत्माका कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। किन्तु तपके द्वारा जो कर्मोंकी निर्जरा की जाती है, वही मोक्ष-सुखको प्राप्त कराती है । .. - विशेषार्थ-संचित कर्मों के झड़नेको निर्जरा कहते हैं । यह निर्जरा दो प्रकारकी होती है सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा । जिस कर्मकी जितनी स्थिति पूर्वमें बंधी थी, उसके पूरा होने पर उस कर्मके फल देकर झड़नेको सविपाक निर्जरा कहते हैं यह सर्व-संसारी जीवोंके होती है, इससे आत्माका कोई लाभ
* जो पुण विसयविरत्तो अपाणं सव्वदा वि संवरई। मणहाविमए हितो तस्स फुडे संवरो होइ ॥१०१।।
. स्वामिका * बंधरदेसग्गालणं णिज्जरणं इदि जिणेहि पणगात्त ।
जेण हवे संवरणं तेण दु णिज्जरणामिदि जाणे ॥६६॥ सा पुण दुविहा णेया सकालपक्का तवेण कयमाणा । चदुर्गादयाणं पढमा वयजुत्ताणं हवे विदिया ॥६॥ .
बारस-अगुवेक्वा