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पांचवीं ढाल . सो थोड़े समयके पश्चात् सब अपने-अपने रास्ते जानेवाले हैं, सदा काल कोई रहने वाला नहीं है, फिर इनके वियोगमें शोक क्यों करना चाहिए ?
देखो, अत्यन्त लाड़-प्यारसे पोषा हुआ, नाना प्रकारके सुगन्धित वस्तुओंसे मर्दन-उवटन किया हुआ, तेल-फुलेलसे संवारा हुआ, तथा नाना प्रकारके उत्तमोत्तम सुस्वादु भोज्यपदार्थोंसे संस्तृप्त किया हुआ भी यह देह एक क्षणमात्रमें नष्ट हो जाता है जैसेकि मिट्टीका कच्चा घड़ा पानी भरते ही विघट जाता है । फिर शरीरके रोगादिसे आक्रान्त होने पर शोक क्यों करना
*जं कि पि वि उप्पएणं तस्य विणासो हवेइ णियमेण । परिणाम सरूवेणवि णय किंपि वि सासयं अस्थि ।।४।। जम्मं मरणेण सम संपज्जइ जुव्वणं जरा सहियें । लक्ष्छो विणाससहिया इय सत्वं भंगुरं मुणह ॥५॥ अथिरं परियणसयणं पुत्तकलत्त सुमित्त लावण्णं। गिह गोहणाइ सव्वं एवषण विदेण सारिच्छं ॥६॥ सुरधशु तडिव्व चवला इंदियविसया सुभिच्च वग्गा य । दिट्टपणा सव्वे तुरय गयरहवरादीया ॥७॥ पंथे पहिय जणाणं जह संजोश्रो हवेइ खणमित्त। बंधुजणाणं च तहा संजोश्रो अद्ध यो होइ ।।
___ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा अइलालिश्रो वि देहो व्हाण सुमधेहिं विविहभक्खेहिं । खणमित्तण वि चिहडइ जलभरियो अामधडउव्व ॥६॥
स्वामिका