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पांचवीं ढाल
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पदार्थ के समान रागभाव नहीं रहता, अतएव उसका वियोग होने पर शोक और विषाद भी नहीं उत्पन्न होता है * ।
अब अशरण - भावनाका वर्णन करते हैं:
सुरा
सुर असर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि काल दले ते । मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई ॥ ४ ॥ अर्थ-संसार जिनको शरण देने वाला मानता है, ऐसे far (इन्द्र) असुराधिप ( नागेन्द्र) और खगाधिप (विद्याधरेशचक्रवर्ती) भी जब स्वयं कालके द्वारा दल-मले जाते हैं, तब वे की क्या रक्षा कर सकते हैं और किसको शरण दे सकते हैं ? किसी को नहीं । जैसे सिंहके मुह में से मृगको बचानेके लिए कोई समर्थ नहीं है, ठीक इसी प्रकार संसारी प्राणीको मणि, मंत्र, तंत्र आदि कोई भी मरनेसे नहीं बचा सकता " !
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विशेषार्थ-संसार में शरण देने वाले पदार्थ दो प्रकारके माने जाते हैं-लौकिक और लोकोत्तर । ये दोनों ही जीव, अजीव
* एवं ह्मस्य चिन्तयतस्तेषु श्रभिष्वं गाभावात् मुक्तोज्झितगंधमयादिषु इव वियोगकालेऽपि विनिगतो नोत्पद्यते ।
तत्वार्थ राजवार्त्तिक ० ६ ० ७
• सिंहस्स कमे पडिद सारंगं जह ण स्क्खदे को वि
तह भिच्चुताय गर्दिवं जीवं पि ण रक्खदे को वि ॥ २४ ॥
स्वामिका ०