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चौथी ढाल ही है , वर्तमान का कानून भी ऐसे पुरुषको चोरीके अपराध ही गिनता है १ । जिस पुरुषको हमने चोरीके लिए मन वचन और कायसे किसी भी प्रकार प्रेरित नहीं किया है, वह यदि चुराकर कुछ द्रव्य लाया है, तो उसे अल्प मूल्य आदि देकर लेना चौराादान नामका अतिचार कहलाता है। यथार्थ में
और वर्तमान कानूनके अनुसार भी यह चोरी ही है और इसीलिए यह अनाचार माना जाना चाहिए, परन्तु चोरीका माल लेने वालेके हृदयमें यदि इतना ही विकल्प उठे कि मैं तो पैसा देकर यह वस्तु ले रहा हूँ, यह तो व्यापार है, इतनी सी अपेक्षा के कारण उसे अतिचार कहा है । वस्तुतः जानते हुए चोरीके मालको लेनेसे व्रतका भंगका हो ही जाता है २। राजाके मर जाने पर, या राज्यमें साम्प्रदायिक उपद्रव, दंगा, फिसाद होने पर बहु मूल्य वस्तुओंको अल्पमूल्यसे लेनेका प्रयत्न करना, अपने अधीन जमीनकी सीमा बढ़ा लेना, किसीके भाग जाने या दंगा आदिमें मारे जाने पर उसके मकान आदि पर कजा आदि कर लेना सो विरुद्धराज्यातिक्रम नामका अतिचार है। इसीका दूसरा नाम विलोप है, क्योंकि शांतिकालके जितने नियम कानून हैं, उन सबका राज्य क्रान्ति, दंगा, युद्ध आदि होने पर लोप हो जाता है ३ । असली सोनेमें पीतल मिला देना
चौरप्रयोगचौरार्थीदानविलोफ्सदृशसन्मिश्राः । हीनाधिकविनिमानं पंचास्तेये व्यतीपाताः
रत्नकरण्ड.