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छहढाला अन्य अङ्गोंसे काम-क्रीड़ा करना सो अनङ्गक्रीड़ा नामका अतिचार है २ । रागसे हंसी मिश्रित भण्ड वचन बोलना, कायसे कुचेष्टा करना सो विटत्व नामका अतिचार है ३ । काम-सेवनकी अत्यन्त अभिलाषा रखना, या काम क्रीड़ामें अधिक मग्न रहना सो कामतीव्राभिनिवेश नामका अतिचार है. ४। व्यभिचारिणी स्त्रियोंके घर आना जाना उनसे हँसी मजाक आदि करना सो इत्वरिकागमन नामका अतिचार है ५ । ... (५) परिग्रहपरिमाण-अणुव्रतके अतिचार-घोड़ा, बैल
आदि जितनी दूर आरामसे जा सकते हैं, उससे भी अधिक दूर तक लोभके वश होकर जोतना सो अतिवाहन नामका पहला अतिचार है । लोभके वशीभूत होकर मुनाफा कमानेकी गर्जसे धन-धान्यादिका अधिक संग्रह करना सो अतिसंग्रह नामका दूसरा अतिचार है। व्यापारके निमित्त जितना धान्य आदि खरीद कर रखा था, उसके बेचनेसे अधिक मुनाफा मिलने पर यह सोचकर पश्चात्ताप करना कि यदि हमने इतना अधिक और खरीदकर रख लिया होता, तो आज खूब लाभ होता। यह विस्मय नामका तीसरा अतिचार है। संगृहीत वस्तुके बेचने पर काफी मुनाफा मिलते हुए उसे इस भावनासे नहीं बेचना कि अभी तो और भी भाव बढ़ेगा और खूब मुनाफा मिलेगा। यह अतिलोभ
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* अन्यविवाहकरणानंगकीडा विटववि मुलतृषः । इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पंचव्यतीचाराः
रत्नकरण्ड०