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. चौथी ढाल है। प्रयोजन को बिना विचारे आवश्यकता से अधिक किसी कामको करना या कराना सो असमीक्ष्याधिकरण नामका पाँचवाँ अतिचार है । जैसे भोजन करने को बैठते समय यदि एक लोटा जलकी आवश्यकता है तो हंडा जल भरकर बैठना, इसी प्रकार घास, लकड़ी आदि लाने वाले किसी आदमीसे कहना कि गाड़ी भर करलेते आओ। जितनेसे हमें प्रयोजन होगा, हम रख लेंगे, बाकी बिकवा देंगे खरीदने वाले अधिक हैं, इत्यादि । ... - अब चार शिक्षाव्रतोंके अतिचार कहते हैं:--: ........... - (१) सामायिक शिक्षाव्रतके अतिचार–सामायिकको करते समय मनको इधर-उधर चलायमान करना, स्थिर नहीं रखना मनोदुःप्रणिधान नामका पहला अतिचार है । सामायिकके समय
*कन्दर्प कौत्कुच्यं मौखर्यमतिप्रसाधनं पंच । - असमीक्ष्य चाधिकरणं व्यतीतयोऽनर्थदंडकृद्विरतेः ।।
रत्नक. "यथाऽऽहारकृते यावज्जलेनास्ति प्रयोजनम् । नेतव्यं तावदेवात्र दूषणं चान्यथोदितम् ।।१४५।।
- लाटीसं० सर्ग०६ * यथा बहुमपि कटमानयत, यावता मे प्रयोजनं तावदहं . ऋष्यामि, शेषमन्ये वहवोऽर्थिनः सन्ति तेऽपि ऋष्यन्ति, अहं . विक्राययिष्यामीत्येवमनालोच्य बहारम्भतृणाजीविभिः कारयति ॥
सागारधर्मा० टीका अ०५ श्लो० १२.