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चौथी ढाल नामका अतिचार है । बैल, घोड़ा आदि अपने अधीन पशुओं, मजदूरों, और नौकर चाकरों पर लोभावेशसे अधिक भारका लादना सो अतिभार नामका पाँचवाँ अतिचार है।
अब गुणब्रतोंके अतिचार कहते हैं:
(१) दिग्व्रतके अतिचारः-जीवन पर्यन्तके लिए जो ऊपर जानेकी सीमा निश्चित की थी, आवश्यकता पड़ने पर उसे बढ़ा लेना सो ऊर्ध्वातिकम नामका पहला अतिचार है । इसी प्रकार नीचे जानेकी सीमाको बढ़ालेना अधोव्यतिक्रम नामका दूसरा अतिचार है और पूर्व, पश्चिम आदि दिशात्रोंमें से तिरछे आने जानेकी मर्यादाको बढ़ा लेना सो तिर्यग्व्यतिक्रम नामका तीसरा अतिचार है। अज्ञानसे, प्रमादसे, भूलसे या आवश्यकताकी विवशतासे किसी एक दिशाकी मर्यादा घटाकर दूसरी ओरकी दिशा-सम्बन्धी मर्यादाको बढ़ालेना सो क्षेत्रवृद्धि नामका चौथा अतिचार है । दिग्बतको धारण करते समय जो दिशाओंकी मर्यादा की थी, उसे भूल जाना सो सीमाविस्मृति नामका पाँचवाँ अतिचार है।
“अतिवाहनातिसंग्रहविस्मयलोभातिभारवहनानि । परिमितपरिग्रहस्य च विक्षेपाः पंच लक्ष्यन्ते ।।
रत्नक०
* ऊर्ध्वाधस्तात्तिर्यग्व्यतिपाता: क्षेत्रवृद्धिरवधीनाम् । विस्मरणं दिग्विरतरत्याशाः पंच मन्यन्ते ।।
रत्नक०