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छहढाला प्रकार राग-द्वषमयी बुरे विचार इसी अनर्थदंडके अन्तर्गत जानना चाहिए।
२ पापोपदेश-खेती, व्यापार आदि आरंभ-समारंभ-वर्धक पाप कार्यों का उपदेश देना पापोपदेश नाम का अनर्थदंड है।
३ प्रमादचर्या-बेकार पृथिवी खोदना, पानी ढोलना, आगजलाना, पंखा चलाना, वृक्ष आदि कटवाना और निष्प्रयोजन इधर-उधर डौड़ना, घूमते फिरना सो प्रमादचर्या नामका अनर्थदंड
- ४ हिंसादान-हिंसाके साधनभूत फरशा, कृपाण, तलवार, धनुष, हल, अग्नि आदिका दूसरों को स्वयं या मांगने पर
देना, हिंसादान नामका अनर्थदंड है ।। ___५ दुःश्रुति-राग-द्वेषको बढ़ाने वाली और चित्तको कलुषित करने वाली प्रारंभ, परिग्रह, मिथ्यात्व, युद्ध, रास-रंग शृंगार
आदि की . कथाओंका सुनना सो दुःश्रुति नामका पांचवां अनर्थदंड है। ___ इन पांचों प्रकारके तथा इसी प्रकारके अन्य भी अनर्थदंडोंका त्याग करना सो अनर्थदंड त्याग नामका तीसरा गुणव्रत है । इस प्रकार तीनों गुणवतोंका स्वरूप कहा ___ अब चार शिक्षाव्रतोंका वर्णन करते हैं--जिनके परिपालनसे मुनि-व्रतके धारण करनेकी शिक्षा मिले उन्हें शिक्षा-व्रत कहते हैं । वे चार हैं-१ सामायिक शिक्षाव्रत, २ प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत, ३ भोगोपभोग परिणाम शिक्षाबत, ४ अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत ।