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छहढाला परिमाण-अणुव्रत कहते हैं। इस प्रकार पाँच अणुव्रतोंका स्वरूप कहा । अब गुणव्रतोंका वर्णन करते हैं:___ जो अणुव्रतोंका उपकार करें,उनकी रक्षा और वृद्वि करें, उन्हें गुणव्रत कहते हैं। गुणव्रत के तीन भेद होते हैं-दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत।
१ दिग्नत-दशों दिशाओंमें जाने आनेका जीवन-पर्यन्तके लिए नियम करके फिर उसकी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करना सो दिव्रत कहलाता है । इस दिग्बतके धारण करने वाले पुरुषके अणुव्रत, दिग्नत की सीमाके बाहर वाले क्षेत्रमें स्थूल वा सूक्ष्म सर्व प्रकार के पापोंकी निवृत्ति हो जाने के कारण महाव्रत की परिणतिको प्राप्त हो जाते हैं, अर्थात् मयादाके बाहर वाले क्षेत्रमें जाने आनेका अभाव हो जानेसे इस व्रत वाले पुरुषको वहां किसी प्रकार का पाप नहीं लगता। मनुष्य इस शरीरसे त्रैलोक्य में जा भी तो नहीं सकता, फिर क्यों न आवश्यकता के अनुसार दशों दिशाओं का परिमाण करके वहांके पापसे बचने का प्रयत्न करे।
"धनधान्यादिग्रन्थं परिमाय ततोऽधिकेषु निस्पृहता। परिमितपरिग्रहः स्यादिच्छापरिमाणनामापि ॥
रत्नकरंडश्रावकाचार अवधेर्बहिरगापप्रतिविरतेदिग्वतानि धारयताम् । पंचमहाव्रतपरिणतिमशुव्रतानि प्रपद्यन्ते ॥
रत्नकरंड श्रावकाचार