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चौथी ढाल
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२ देशव्रत - जीवन - पर्यन्तके लिए की हुई दिखतकी सीमाके भीतर भी प्रतिदिन कालकी मर्यादाके साथ ग्राम, गली गृह, बाग बाजार आदि के आश्रयसे जाने आने का प्रमाण करके उसके बाहर नहीं जाना आना सो देशव्रत नामका दूसरा गुणव्रत है । इस व्रत धारण करने से यह लाभ है कि प्रतिदिन जितनी दूर जाने आने का नियम लिया है, उससे बाहर की जितनी समस्त दितकी सीमा है, वहां नहीं जाने आनेके कारण पांचों पापों का सर्वथा त्याग होजाता है और इस प्रकार उतने क्षेत्रमें सहज ही महाव्रतों की साधना श्रावकके हो जाती है ।
३ अर्थदंड - जिन कार्योंके करने से श्रावक को कोई आत्मिक लाभ नहीं है ऐसे व्यर्थके पापोंके त्याग करने को अर्थदंडवत कहते हैं । ये अर्थदंड पांच प्रकार शास्त्रकारों ने बतलाये हैं: -- १ अपध्यान, २ पापोपदेश, ३ प्रमादचर्या, ४ हिंसादान ५ दुःश्रुति ।
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१ अपध्यान- अनर्थदंड - द्व ेषसे किसीके धनकी हानि सोचना, रागसे किसीके धनका लाभ सोचना, किसी की जीत और किसी की हार विचारना सो अपध्यान नामका अनर्थदंड है । अमुक पुरुषकी स्त्री बहत सुन्दर है, अमुक बहुत बदमाश है इत्यादि
● सीमांतानां परत: स्थूलेतरपं चपापसंत्यागात् । देशावकाशिकेन च महाव्रतानि प्रसाध्यन्ते ॥
रत्नकरंड श्रावकाचार