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छहढाला
जलमें रहता हुआ भी उसमें लिप्त नहीं होता, किन्तु भिन्न ही रहता है, अथवा जैसे वेश्यो का प्यार आगन्तुक पर ऊपरी ही रहता है, भीतरी नहीं, तथा जिस प्रकार कीचड़ में पड़ा सोना ऊपरसे ही मैला होता है, पर भीतर तो निर्मल ही रहता है, इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव घरमें रहते और भोगोपभोग को भोगते हुए भी उन सबसे अलिप्त रहता है ।
आगे सम्यग्दर्शनकी और भी महिमा बतलाते हैं :प्रथम नरक विन षट् भू, ज्योतिष वान भवन सब नारी, थावर विकलत्रय पशुमें नहि उपजत सम्यकधारी ।* तीन लोक तिहुं काल माँहि नहिं दर्शन सो सुखकारी, सकल धरमको मूल यही इस विन करनी दुखकारी ॥१६ ।
अर्थ-सम्यग्दृष्टि जीव प्रथम नरकके बिना नीचेके छह नरकोंमें उत्पन्न नहीं होता, भवनवासी, ब्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें भी उत्पन्न नहीं होता है । तथा सब प्रकारकी स्त्रियोंमें अर्थात् तिर्यचिनी, मनुष्यनी और देवांगनाओंमें भी उत्पन्न नहीं होता। स्थावर, विकलत्रय और पंचेन्द्रिय पशुओंमें भी उत्पन्न नहीं होता है । तीन लोक और तीनों कालोंमें सम्यग्दर्शनके समान सुखकारी वस्तु नहीं है। समस्त धर्म का मूल यह सम्यग्दर्शन * सम्यग्दर्शनशुद्धाः नानकतिर्यङ नपुसकस्त्रीत्वानि ।' दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यवतिकाः ॥३५।।
रत्नकरंड श्रा०