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छहढाला
होता है, तभी सम्यग्ज्ञान भी प्रकट हो जाता है, अर्थात् मिध्यात्व दशामें जो मति, श्रुत आदि ज्ञान थे और सम्यग्दर्शन न प्रकट होनेसे अभी तक मिथ्याज्ञान कहलाते थे, वे ही सम्यग्दर्शन प्रकट होनेके प्रभावसे सम्यग्ज्ञान कहलाने लगते हैं, अन्य कोई भेद नहीं जानना चाहिए ।
शंका - इस प्रकार तो सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टि जीवके ज्ञानमें कोई भेद नहीं रहा, फिर एकका ज्ञान क्यों सच्चा कहा जा और दूसरे का ज्ञान क्यों मिथ्या कहा जाय ?
समाधान — सम्यग्दृष्टि जीव प्रयोजनभूत जीवादि तत्वोंके यथार्थ स्वरूपका जानकार होता है, इसलिए अन्य पदार्थ जो उसके जानने में आते हैं, वह उन सबका यथार्थ रूप ही श्रद्धान करता है, अतएव उसका ज्ञान सच्चा कहलाता है । किन्तु मिथ्यादृष्टि जीव जीवादि मूल तत्वोंके यथार्थ ज्ञानसे रहित होता है, इसलिए अन्य प्रयोजनीय जो पदार्थ उसके जाननेमें आते हैं, वह उनको भी अयथार्थ ही जानता है इसी कारण उसका ज्ञान मिथ्या कहलाता है । मिथ्यादृष्टि का ज्ञान अनिश्चित होता है, सम्यग्दृष्टिके समान पदार्थोंको जानते हुए भी उसके ज्ञानमें पदार्थों के यथार्थ स्वरूपको जानने की कमी रहती है । मिध्यादृष्टि का ज्ञान कारण विपर्यास, भेदाभेदविपर्यास और स्वरूप विपर्यास रूप होनेके कारण मिथ्याज्ञान कहलाता है । इन तीनों का संक्षिप्त स्वरूप क्रमशः इस प्रकार जानना चाहिए :