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चौथी ढाल
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पदार्थोंके स्पष्ट जाननेको अवधिज्ञान कहते हैं । पुद्गल द्रव्यको रूपी पदार्थ कहते हैं अतः यह अवधिज्ञान स्थूल पुद्गलोंसे लेकर सूक्ष्म पुद्गल परमाणु तकको प्रत्यक्ष जान सकता है । यही अवधि ज्ञान पुद् गलके निमित्तसे होने वाली जीवकी मनुष्य, तिर्यंच, आदि त्रिकालवर्ती पर्यायोंको अपनी शक्तिके अनुसार जान लेता है । शक्तिके अनुसार कहनेका अभिप्राय यह है कि जिन जीवोंके अवधिज्ञान होता है, उन सबके एकसा नहीं होता, किन्तु विशुद्धि और संयम की अपेक्षा हीन या अधिक होता है । जीवके ज्यों ज्यों परिणामोंमें विशुद्धि बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों अवधिज्ञानके द्वारा जाननेकी शक्ति भी बढ़ती जाती है । देव और नारकियोंके जो अवधिज्ञान होता है उसे भवप्रत्यय अवधि कहते हैं, क्योंकि, वह देव या नरक पर्यायके निमित्तसे उत्पन्न होता है । नारकियोंके सबसे छोटा भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है और देवोंके सबसे बड़ा । मनुष्य और तिर्यंचोंके जो अवधिहोता है उसे क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहते हैं । यह अवधिज्ञान तीन प्रकारका है - देशावधि, परमावधि और सर्वावधि देव, नारकी और तिर्यंचोंके देशावधि ज्ञान ही होता है किन्तु मनुष्य के तीनों प्रकारका अवधि ज्ञान हो सकता है । उसमें भी परमावधि और सर्वावधि तो तद्भव मोक्ष-गामी संयमी मनुष्य के ही होते हैं । इस अवधिज्ञानके द्वारा पिछले या आगामी भवों का वर्णन जीवोंके पारस्परिक खोई, गुमी या चुराई