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छहढाला
११२ ज्ञानकी प्राप्ति होती है। सम्यग्ज्ञानके वे आठ अंग इस प्रकार हैं:
१-ग्रन्थाचार-व्याकणके अनुसार अक्षर पद, मात्रादिका शुद्धता पूर्वक पठन-पाठन करना छन्दशास्त्रके अनुसार विवक्षित पद्यको उसी छन्दके राग (चाल ) से पढ़ना ग्रन्थाचार है। ___२--अर्थाचार-ग्रन्थके यथार्थ शुद्ध अर्थके निश्चय करनेको अर्थाचार कहते हैं।
३ उभयाचार-मूल ग्रन्थ और उसका अर्थ इन दोनोंके शुद्ध पठन-पाठन और अभ्यास वा धारण करने को उभयाचार कहते हैं।
४ कालाचार-अध्ययनके लिये जिस समयको शास्त्रकारोंने अकाल कहा है, उस समयको छोड़ कर उत्तम योग्य कालमें पठन-पाठन कर ज्ञानके विचार करनेको कालाचार कहते हैं ।
५ विनयाचार-शुद्ध जलसे हाथ, पाँव धोकर निर्जन्तु, स्वच्छ एवं निरुपद्रव स्थानमें पद्मासन बैठ कर विनय पूर्वक शास्त्राभ्यास, तत्व-चिंतन आदि करनेको विनयाचार कहते हैं।
६ उपधानाचार-धारणा सहित ज्ञानकी आराधना करनेको उपधानाचार कहते हैं, अर्थात् जो कुछ पढ़ें, उसे भूल न जावें याद रखें।
७ बहुमानाचार-ज्ञान और ज्ञानके साधन शास्त्र, पोथी, गुरु यादिका पूर्ण सन्मान करना बहुमानाचार है।