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चौथी ढाल
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धन समाज गज बाज राज कछु काज न आवे, ज्ञान आपको रूप भये फिर अचल रहावे । लास ज्ञानको कारण स्व-पर विवेक बखानो, कोटि उपाय बनाय, भव्य ताको उर अानो ।। अर्थ-रात दिन अनेकों कष्ट उठाकर उपार्जित किया हुआ यह धन, यह जन-समाज, हाथी, घोड़े, और यह राज-पाट आदि कोईभी लौकिक सम्पदा आत्माके किसीभी काममें आने वाली नहीं है, सब यहींके यहीं रह जाने वाले हैं, मरने पर कोईभी पदार्थ आत्माके साथ चलने वाला नहीं है, एक सच्चा ज्ञान ही ऐसा है, कि यदि उसकी प्राप्ति हो जाय तो वह अचल रहता है अर्थात् कभी नहीं छूटता, परभवमें भी साथ चलता है, क्योंकि वह अपनी आत्माका स्वरूप है। इस सम्यग्ज्ञानके पानेका कारण स्व-पर विवेक अर्थात् आपा-परका भेद ज्ञान बतलाया गया है । इसलिए हे भब्य जीवो ! कोटि उपाय बनाकर जैसे बने उस प्रकारसे प्रयत्न कर उस स्व-पर विवेकको अपने हृदयमें लाओ।
आगे और भी ज्ञान की महिमा बतलाते हैं:जे पूरव शिव गये, जांहि, अब आगे जे हैं, सो सच महिमा ज्ञान-तनी मुनि-नाथ कहे हैं। विषय-चाह दव-दाह जगत-जन अरनि दझावे, तासु उपाय न आन ज्ञान-घन घान बुझावे॥७॥