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चौथी ढाल
सम्यक कारण जान ज्ञान कारज है सोई, युगपत होते हू प्रकाश दीपकतें होई* ॥१॥
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अर्थ - यद्यपि सम्यग्दर्शनके साथ ही सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है, तथापि उन दोनों का भिन्न भिन्न ही आराधन करना चाहिए, क्योंकि सम्यग्दर्शनका लक्षण यथार्थ श्रद्धान करना है। और सम्यग्ज्ञानका लक्षण यथार्थ जानना है, इस प्रकार दोनों में अबाधित भेद है | सम्यग्दर्शन कारण है और सम्यग्ज्ञान उसका कार्य जानना चाहिए । इन दोनों के एक साथ उत्पन्न होने पर भी दीपक और प्रकाशके समान उनमें कार्य कारण भाव है जिस प्रकार दीपक का जलना और उसका प्रकाश एक ही समय में प्रगट होता है तो भी दीपक का जलना कारण है और प्रकाश उसका कार्य है ।
विशेषार्थं - पदार्थों के स्वरूपके यथार्थ जाननेको सम्यग्ज्ञान कहते हैं । यह सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शनके समान ही आत्माका निज स्वरूप है, इसलिए जब आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण प्रकट
* पृथगाराधनमिं दर्शनसहभाविनोऽपि बोधस्य । लक्षणभेदेन यतो नानात्वं संभवत्यनयोः ||३२|| सम्यग्ज्ञानं कार्य सम्यक्त्वं कारणं वदन्ति जिना: । ज्ञान राधनमिष्टं सम्यक्त्वानन्तरं तस्मात् ||३३|| कार कार्यविधानं समकालं जायमानयोरपि हि । दीप प्रकाशयोरित्र सम्यक्त्व-ज्ञानयोः सुघटम् ||६४ ||
पुरुषार्थसिद्ध युपाय