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चौथो ढाल कारण-विपयास-पदार्थोंकी अवस्थाएं प्रतिक्षण बदलती रहती हैं उनका यथार्थ कारण क्या है ? इस बातके यथार्थ ज्ञान न होनेको या उसके अन्य मतावलम्बियों द्वारा माने गये विपरीत कारणोंको मानना सो कारण विपर्यास है। जैसे—रूपी जड़ पदार्थोंका भी मूलकारण एक अमूर्तिक नित्य ब्रह्मको मानना, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुके शरीराकार परिणत परमाणुओंको भिन्न-भिन्न मानना, समस्त संसारी जीवोंको एक परमात्माके अंश मानना, चेतनको अपरिणमनशील मानना, क्रोध, मान, मायादिको जीवके वैभाविक भाव न मानकर प्रकृतिके विकार मानना आदि । ___ भेदाभेद-विपर्यास कारणसे कार्यको सवथा भिन्न या सर्वथा अभिन्न मानना, यह भेदाभेद-विपर्यास है । क्योंकि यथार्थमें उपादानरूपसे कारणके समान ही कार्य होता है इस अपेक्षा तो कारणसे कार्य अभिन्न है किन्तु पर्यायके बदलनेकी अपेक्षा कारणसे कार्य भिन्न है। इस प्रकार अनेकान्त-वादकी दृष्टिसे कारणसे कार्यमें कथंचित् भेदाभेद है, सर्वथा नहीं।
स्वरूप विपर्यास-रूप, रस, आदिको निर्विकल्प या ब्रह्मरूप समझना, या उन्हें ज्ञान स्वरूप पर्याय मात्र समझना स्वरूपविपर्यास है।
मथ्याष्टि जीव कदाचित् शास्त्रोंके विशेष अभ्याससे पदार्थों का स्वरूप यथार्थ जान भी लेवे तो भी उनसे सांसारिक बंधरूप अभिप्रायकी ही सिद्धि करता है, मोक्षरूप साधनकी