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छहढाला
उत्तम मध्यम जवन त्रिविध के अन्तर आतम ज्ञानी, द्विविध संग विन शुध उपयोगी मुनि उत्तम निज ध्यानी ॥४॥ मध्यम अन्तर आतम हैं जे देशव्रती अनगारी, जघन कहे अविरत - समदृष्टी तीनों शिवमग- चारी । सकल निकल परमातम द्वैविधि तिनमें घाति निवारी, श्री अरिहन्त सकल परमातम लोकालोक निहारी ||५|| ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल - वर्जित सिद्ध महंता, ते हैं from परमातम भोगें शर्म अनन्ता | बहिरा तमता हेय जान तज, अन्तर आतम हुजै, परमातम को ध्याय निरन्तर जो नित आनन्द पूजै ||५||
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अर्थ-जीव तीन प्रकारके होते हैं - बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । इनमें से जो देह और जीवको एक अभिन्न मानता है, तत्वोंके यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता है, मिथ्यादर्शनसे संयुक्त है, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ सेव है, वह बहिरात्मा है । जो जिन - प्ररूपित तत्वोंके जानकार हैं, देह और जीवके भेद को जानते हैं, आठ प्रकार के मदों को जीतने वाले हैं, वे अन्तरात्मा कहलाते हैं । ऐसे ज्ञानी अन्तरात्मा उत्तम, मध्यम और जघन्यके भेदसे तीन प्रकारके हैं। इनमें जो चौदह प्रकार के अन्तरंग और दश प्रकार के बहिरंग परिग्रहसे रहित हैं, शुद्ध उपयोगी हैं, आत्माका निरंतर