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तीसरी ढाल
५७ है। इस प्रकारके अभेद-रत्नत्रय से कर्मोंका बन्ध कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता है ।। __ब्यवहार मोक्षमार्गको जाने बिना निश्चय मोक्षमार्गकी प्राप्ति नहीं हो सकती है, इसलिए व्यवहार मोक्षमार्गको निश्चय मोक्षमार्ग का कारण कहा है। प्रत्येक तत्व-जिज्ञासु को पहले व्यवहार मोक्षमार्गका आश्रय लेना चाहिए, जिससे कि निश्चय मोक्षमार्गकी प्राप्ति सुलभ हो सके ।
अब व्यवहार सम्यग्दर्शनका स्वरूप कहते हैंजीव अजीव तत्व अरु आस्रव बध रु. संवर जानो, निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको ज्योंको त्यों सरधानो । है सोई समकित व्यवहारी अब इन रूप बखानों, तिनको सुन सामान्य विशे', दृढ़ प्रतीत उर श्रानो ॥३॥ ___ अर्थ-जिन भगवान ने जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वोंका जैसा स्वरूप कहा है, उनका ज्यों का त्यों श्रद्धान करना सो व्यवहार सम्यग्दर्शन है। अब आगे इन सातों तत्वोंका सामान्य अर्थात् सक्षेप रूपसे और विशेष अर्थात् विस्तार रूपसे व्याख्यान किया जाता है, सो उसे हे भव्य जीवो ! सुनो और अपने हृदयमें उनका दृढ़ विश्वास लाश्रो।
अब सबसे पहले जीव तत्वका वर्णन करते हैं :--- बहिरातम अन्तर-आतम परमातम जीव त्रिधा है, देह जीवको एक गिने बहिरातम तत्व मुधा है।