________________
मूढ़ता ही है । सम्यग्दृष्टिको इनका त्याग अवश्य ही करना चाहिए।
किसी वर पानेकी इच्छासे आशावान् होकर रागद्वेषसे मलीमस देवताओं की पूजा-उपासना करना सो देवमूढ़ता है । मोहरूपी मदिराके पान करनेसे मत्त, नाना प्रकारके कुत्सित वेषों के धारण करने वाले और अन्य मतावलंबियोंसे परिकल्पित ब्रह्मा, उमापति, गोविन्द, शाक्य, चन्द्र, सूर्य, आदिकमें प्राप्त बुद्धि करना, उन्हें अपनी आत्माका उद्धारक सच्चा देव मानना, ये सब देवमूढ़ता है।
सूर्या? बह्निसत्कारो गोमूत्रस्य निषेवणम् । तत्पृष्ठांतनमस्कारो भृगुपातादिसाधनम् ।। देहलीगेहरत्नाश्वगजशस्त्रादिपूजनम् । नदीनदसमुद्रेषु मज्जनं पुण्यहेतवे ।। संक्रांती च तिलस्नानं दानं च ग्रहणादिषु । संध्यायां मौनमित्यादि त्यज्यतां लोकमूढतम् ।।
___ संस्कृतभावसंग्रह "वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः। देवता यदुपासीत देवतामूढमुच्यते ।।
रत्नकरंड श्रावकाचार. ब्रह्मोमापतिगोविंदशाक्येन्दुतपनादिषु । मोहकादम्बरी मत्त प्वाप्तधीर्देवमूढ़ता I
योगशास्त्र, ४६.