________________
तीसरी ढाल पर उपेक्षा हो जाती है। सञ्चा इलाज न होनेसे रोगके भयंकर . होनेका भय रहता है और ऐसी सैकड़ों घटनाएं प्रतिदिन होती रहती हैं। इतना ही नहीं, इसी मूढ़ताकी वेदीपर सैकड़ों बच्चों का प्रतिदिन बलिदान होता रहता है । इस प्रकार यह मूढ़ता जिनके पास है, उन्हें दुःखदायी है, उनके आश्रित बच्चों, तथा कुटुम्बियों का बलिदान लेनेसे उन आश्रितों को दुःखदायी है, तथा जो पड़ौसी या परिचित जन मूढ़ता वाले पुरुषों की बातों पर विश्वास करते हैं, उनको दुःखदायी है । इस प्रकार यह स्व-पर दुःखदायी होनेसे अधर्म है,मूढ़ता है। - शंका-देवपूजा, मंत्र जाप आदिसे रोग-शान्ति और उपद्रव दूर होनेकी बात. अकारणक नहीं है, क्योंकि देवपूजा आदिसे पुण्यका बंध होता है और पुण्य-बंधसे पाप का नाश होता है या उसका उदय निस्तेज हो जाता है । जब पाप रूप कारण दूर होगा, तब दुःखरूप कार्य भी दूर होगा, इस प्रकार देवपूजा, मंत्र जाप आदिका रोगादि-नाशकपना सिद्ध होता है।
समाधान-देवपूजा, मंत्र जाप आदिसे भविष्यके दुःखका नाश हो सकता है, वर्तमान का नहीं 1 देव-पूजादिसे पुण्यबंध होता है, संचित कर्मका नाश नहीं। भविष्यमें ऐसा दुःख फिर न भोगना पड़े, इसके लिए पूजादि का उपयोग किसी तरह कहा गया, तो ठीक है, किन्तु उसका प्रभाव वर्तमानमें फल देने वाले कम पर नहीं पड़ता । उसके लिये तो उचित तपकी आवश्यकता है। तबले ही संचेत कर्मों की निर्जरा होती है,