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तीसरी ढाल
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आरंभी, परिग्रही और हिंसादि पापाचरण करने वाले, संसार रूप समुद्रकी भंवरमें डुबकियाँ लेने वाले, पाखण्डी ढोंगी और नानावेष धारक कुगुरुओंका आदर-सत्कार करना सो पाखण्डि मूढ़ता है । इसको ही गुरुमूढ़ता भी कहते हैं। चौथे अङ्ग के कारण सम्यग्दृष्टि को उक्त तीनों मूढ़तायें छोड़ देना चाहिये ।
किसी मनुष्यके बीमार होने पर बीमारी के अनुसार उसका इलाज न कराकर बीमारी को दूर कराने के लिए शीतला को माता मानकर जल चढ़ाना, दुर्गापाठ करना, मूर्तियों का चरणोदक सिरसे लगाना मन्त्र जाप करना आदि सब मूढ़ता ही है । फिर भले ही ये काम महावीर या पार्श्वनाथ को आधार बनाकर किये जांय, या बुद्ध विष्णु, शिव पार्वती, पद्मावती आदि किसी देवी देवता आदिको आधार बना कर किये जायें। कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि बीमारी इत्यादिको दूर करनेके लिए जिनभगवान की या अपने इष्ट देवकी पूजा अर्चा आदिमें कुछ दोष नहीं है, किन्तु दूसरे देवों की या कुदेवों की पूजा उपासनामें दोष है । परन्तु यह उनकी भूल है। रोग आदिके दूर करनेके लिये देवपूजा आदिको इसलिये मूढ़ता कहा है कि उन देवोंका बीमारीके रहने या जानेसे कोई सम्बन्ध नहीं है । बीमारियाँ देवताओंके
● सग्रन्थारम्भहिंसानां संसारावन्त वर्तिनाम् । पाखंडिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाखंडिमोहनम् ||
रत्नकरं श्रावकाचार