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छहढाला
बसे, तप तथा दान आदि से जैन धर्म का उत्कर्ष करना बाह्य प्रभावना है । कोई चमत्कार दिखाकर मिथ्या धर्मका प्रभाव घटाना भी प्रभावना अंगमें शामिल है ।
सम्यग्दर्शन मदनामक आठ दोषों का वर्णन
करते हैं ।
पिता भूप वा मातुल नृप जो होय न तो मद ठाने, मदन रूपको मदन ज्ञानको धन बलको मद भानै | १३ | तपको मदन मदजु प्रभुताको करै न सो निज जाने, मद धारे तो यही दोष व समकितको मल ठानै ॥
अर्थ - पिताके राजा होनेका अथवा अपने कुलके ऊचे होने का अभिमान करना कुलमद है । मामाके राजा होनेका या मांके वंशके उच्च होनेका अहंकार करना जाति मद है | शरीरकी सुन्दरताका अभिमान करना रूप मद है । अपनी विद्या, कलाकौशलका मान करना ज्ञान मद है । अपने धन वैभव का घमंड करना धन मद है । अपनी शक्ति का गर्व करना बलमढ़ है ।
बाह्यः प्रभावनांगोऽस्ति विद्यामंत्रादिभिर्वलैः । तपोदानादिभिर्जेनधर्मोत्कर्षो विधीयताम् ||८१६ ॥ परेषामपकर्षाय मिथ्यात्वोत्कर्षशालिनाम् । चमत्कारकरं किंचिद्विधेयं महात्मभिः || ८२० ॥
पंचाध्यायी ।