________________
तीसरी ढाल कुमार्ग और कुमार्ग पर चलने वाले पुरुषों को मन-वचन-कायसे अनुमोदना, प्रशंसा, सराहना, आदि न करना सो अमूढदृष्टि अंग हैं। इस अंगके धारक सम्यग्दृष्टि पुरुषको लोकमूढ़ता देवमूढ़ता और गुरुमूढता ये तीनों मूढ़ताएं अवश्य छोड़ना चाहिए । धर्म मानकर नदी-समुद्र आदिमें स्नान करना, वालू पत्थर वगैरहके ढेर लगाना, पर्वतसे गिरना, अग्निमें प्रवेश करना , सूर्य को अर्घ देना, अग्नि की पूजा करना, गायके मूत्रका सेवन करना, गोबरको पवित्र मानना, मकान की देहली आदि को पूजना, घरकी पूजा करना, रत्न, घोड़ा, हाथी, शस्त्र आदिकी पूजा करना, मकरसंक्रान्ति आदिके समय तिलके स्नानसे उसके दानसे पुण्य मानना, सूर्य, चन्द्र आदि ग्रहण समय दान देना, संध्या समय ही मौन धारण करनेमें धर्म मानना ये सब लोक
लोके शास्त्राभासे समयाभासे च देवताभासे । नित्यमपि तत्वरुचिना कर्त्तव्यममूढदृष्टित्वम् ॥
पुरुषार्थसि० कापथे पथि दुःखानां कापथस्थेऽप्यसम्मतिः । यसम्पृक्तिरनुत्कीतिरमूढा दृष्टिरुच्यते ॥
रत्नकरंड श्रा. *प्रापमासागरस्नानमुच्चयः सिकताश्मनाम् । गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमूढं निगद्यते ॥
रत्नकरंड भा०