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नीसरी ढाल भय कहते हैं । बिजली का गिरना, भूकम्पका होना आदि
आकस्मिक कारणोंसे जो भय होता है उसे आकस्मिकभय कहते हैं। सम्यग्दृष्टि जीव यथार्थ वस्तु-स्वरूपको जाननेके कारण इन सब भयोंसे मुक्त रहता है। ___ २ निःकांक्षित अंग-धर्म सेवन करते हुए उसके फलसे इस जन्ममें लौकिक विभव-सम्पत्ति आदिकी इच्छा न करना और परभवमें नारायण, बलभद्र, चक्रवर्ती आदि होने की इच्छा न करना, भोगों की अभिलाषा न करना निःकांक्षित अंग है । सांसारिक सुख भोग आदि कर्मके परवश हैं, अन्त करके सहित हैं, शारीरिक और मानसिक दुःखोंसे जिसका उदय व्याप्त है और पापका बीज है, ऐसे सुखकी इच्छा न करना ही श्रेष्ठ है, इस प्रकारके विचार जागृत हो जाने से सम्यग्दृष्टि इहलोक और पर लोक सम्बन्धी भोगोपभोगोंकी आकांक्षासे दूर रहता है।
"अकस्माज्जातमित्युच्चेराकस्मिकभयं स्मृतम् । तद्यथा विद्यु दादीनां पातात्पातोऽसुधारिणाम् ॥६६।।
लाटी संहिता सर्ग ४ *इह जन्मनि विभवादीनमुत्र चक्रित्वकेशवत्वादीन् । एकांतवाददूषितपरसमयानपि च नाकांक्षेत् ॥
पुरुषाथ द्ध सियुपाय कर्मपरवशे सान्ते दुःखैरन्तरितोदये । पापबीजे सुखेनास्था श्रद्धानाकांक्षणा स्मृता ।।
___ रत्नकरंड श्राकाचार इहलोक-परलोकभोगोपभोगाकांक्षा-निवृत्तिनिष्कांक्षित्वम् ।
भावपाहुड टीका गा० ७७.