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छहढाला
परन्तु श्री कुन्दकुन्दाचायने अपने रयणसार नामके पाहुडमें एक गाथा दी है, जिसमें गुणस्थान क्रमसे बहिरात्मा आदि का विभाग किया है । वह गाथा इस प्रकार है:मिस्सो ति बाहिरप्पा तरतमया तुरिय अंतरप्पजहण्णा । संतो ति मज्झिमतर खाणुत्तम परम जिणसिद्धा ॥ १४६ ॥ __अर्थ तीसरे मिश्रगुणस्थान तक तारतम्य लिए हुए. बहिरात्मा जानना चाहिए । चौथे गुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्दृष्टि जघन्य अन्तरात्मा हैं । पांचवें देशविरत गुणस्थानसे लेकर उपशान्तमोह नामक ग्यारवें गुणस्थान तकके जीव मध्यम अंतरात्मा हैं। क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थानवर्ती छद्मस्थ वीतराग उत्कृष्ट अन्तरात्मा है । जिनेन्द्र सर्वज्ञ सकल परमात्मा और सिद्धभगवान् निकल परमात्मा हैं।
इस गाथासे अन्तरात्माके तीनों भेदोंका स्पष्ट विवेचन हो जाता है। यह व्याख्यान दिगम्बर परंपराके प्रसिद्ध आचार्य कुन्दकुन्दस्वामीका है। इसके पीछे होने वाले आचार्योंने इसी मान्यताको क्यों महत्व नहीं दिया ? इस प्रश्नका उत्तर शायद व्यवहारिक व्यवस्था करना अभीष्ट हो। ____ मिथ्या-सासादन-मिश्रगुणस्थानत्रये तारतम्य - न्यूनाधिकभेदेन बहिरात्मा ज्ञातव्यः, अविरतगुणस्थाने तद्योग्याशुभलेश्यापरिणतो जघन्यान्तरात्मा, क्षीणकषायगुणस्थाने पुनरुत्कृष्टः, अविरतक्षीणकषाययोर्मध्ये मभ्यमः । सयोग्ययोगिगुणस्थानद्वये