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छहढाला
जड़ (मूल ) कहा है, मोक्षरूप महलकी पहली सीढ़ी कहा है । इसे ही परमपुरुषार्थ, परमपद, परंज्योति, आदि अनेकों नामोंसे स्तवन किया है ।
इसे ही इष्ट अर्थ की सिद्धि, अज्ञातीत सुख और कल्याण की परम्परा माना है । इस सम्यग्दर्शन के धारण करने में कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता है, न कष्ट सहन ही करना पड़ता है । इसकी प्राप्ति कितनी सीधी और सरल है कि जितना सरल और कोई लौकिक कार्य भी नहीं हो सकता । संसार के प्रत्येक कार्यके लिए महान् परिश्रम उठाना पड़ता है, रात-दिन एक करना पड़ता है, तब कहीं कोई लौकिक कार्य सिद्ध होता है । परन्तु सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिको क्या चाहिए ? मिथ्यात्व और मूढ़ताओं को छोड़ दीजिए और अपनी तीत्रकषायोंको मंदा कर लीजिए । शान्तिके साथ आत्मस्वरूपको समझने की कोशिश कीजिए, सात तत्वोंका ज्ञान प्राप्त कीजिए और सच्चे देव, शास्त्र, गुरुको पहचान कर उन पर विश्वास कीजिए कि ये ही हमारे
* सम्यक्त्वं दुर्लभं लोके सम्यक्त्वं मोक्षसाधनम् ज्ञानचारित्रयोबर्जं मूलं धर्मतरोरिव ॥१॥ तदेव सत्पुरुषार्थस्तदेव परमं पदम् । तदेव परमं ज्योतिस्तदेव परमं तपः ||२॥ तदेवेष्टार्थस सिद्धिस्तदेवास्ति मनोरथ:
श्रचातीतं सुखं तत्स्यात्तत्कल्याणपरंपरा ||३|| लाटी संहिता तृतीयसग !