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छहढाला
कालद्रव्य कहते हैं। काल दे प्रकार का है-एक निश्चय काल
और दूसरा व्यहार काल । वर्तना जिसका लक्षण है, उसे निश्चय काल कहते हैं, और घड़ी, घंटा, दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष,
आदिको व्यवहार काल कहते हैं। ये पांचों ही द्रव्य अजीव हैं, इसलिए इनका अजीवतत्लके अन्र्तात वर्णन किया गया है ।
- इस प्रकार अजीवतत्वका वणन कर अब प्रास्रव आदि शेष तत्वोंका वर्णन करते हैं :-- यों अजीव, अब आस्रव सुनिये मन वच काय त्रियोगा , मिथ्या अविरति अरु कषाय परमाद सहित उपयोगा ॥८॥ ये ही आतम को दुख-कारण ताते इनको तजिये , जीव प्रदेश बंधे विधिप्सों सो बंधन कबहुन सजिये । शम-दमतें जो कर्म न आवे, मो संवर आदरिये, तप बलते विधि झरन निर्जरा ताहि सदा आचरिये ॥ ७ ॥ सकल कर्मते रहित अवस्था सो शिव थिर सुखकारी , इहविध जो सरधा तत्वनिकी सो समांकत व्यवहारी । देव जिनेन्द्र, गुरू पग्ग्रिह विन धर्मदयायुत सारो, यह मान ममकित को कारण अष्ट अंगजुत धारो ॥१०॥ ____ अर्थ-इस प्रकार अजीवतत्वका वर्णन किया, अब आस्रवतत्वका वर्णन करते हैं, सो उसे सुनिये :