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तीसरी ढाल
गया है आकुलता एकमात्र मोक्षमें नहीं है, इसलिए सुख मात्रके इच्छुक भव्य जीवोंको मोक्षमार्ग पर चलने का उपदेश दिया है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र को मोक्षमार्ग कहा गया है । इन तीनों का विस्तृत विवेचन आगे इसी ग्रंथमें ग्रन्थकार ने स्वयं ही किया है, इसलिए यहां नहीं लिखा है । सम्यग्दर्शन, ज्ञानचारित्रात्मक मोक्षमार्ग को प्राचार्योंने दो प्रकारका कहा है -एक निश्चय मोक्षमार्ग और दूसरा व्यवहार मोक्ष मार्ग । जो एकमात्र शुद्ध आत्माके आश्रित है, परके पंसर्गसे सर्वथा रहित है वह निश्चय मोक्षमार्ग है । जो निश्चय मोक्षमार्ग का कारण है अर्थात निश्चय मोक्षमार्ग को प्राप्त करने का उपाय है, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है। __ अब आगे निश्चय मोक्षमार्ग स्वरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का स्वरूप कहते हैं :पर-द्रव्यनितें भिन्न आपमें रुचि सम्यक्त्व भला है, आप रूप को जानपनो सो सम्यग्ज्ञान कला है । आप रूप में लीन रहे थिर सम्यक चारित मोई , अब व्यवहार मोक्ष-मग सुनिये हेतु नियत को होई ॥२॥ ___ अर्थ- पुद्गल आदि पन-द्रव्यांसे अपने आपको सर्वथा भिन्न समझकर अपनी आत्मामें जो दृढ़ रुचि, प्रतीति श्रद्धान या विश्वास होना सो निश्चय सम्यग्दर्शन है । अपने आत्मस्वरूपका यभाये जानना सो निश्चय सम्यग्ज्ञान है । अपनी आत्मामें