________________
तीसरी ढाल अब ग्रन्थकार संसार-परिभ्रमण छूटने और मोक्ष पाने का उपाय बतलाते हैं :प्रातमको हित है सुख, सो सुख आकुलता विन कहिए। श्राकुलता शिवमांहि न तातें, शिवमग लाग्यो चहिए । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण शिवमग सो दुविध विचारो। जो सत्यारथ रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो॥१॥ ___ अर्थ-आत्मा का हित सुख है, और वह सुख आकुलताके बिना कहा गया है । आकुलता मोक्ष में नहीं है, इसलिए आत्म हितैषियोंको मोक्षमार्ग में लगना चाहिए । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
और सम्यकचारित्र मोक्ष का मार्ग हैं। वह मोक्ष मार्ग दो प्रकारका जानना चाहिए—एक निश्चय मोक्ष मार्ग और दूसरा व्यवहार मोक्ष मार्ग । जो यथार्थ स्वरूप है वह निश्चय मोक्ष मार्ग है और जो निश्चय मोक्षमार्ग का कारण है, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है।
विशेषार्थ आत्माका सञ्चा हित सुख है क्योंकि संसारके प्राणिमात्र सुखकी ही कामना करते हैं। सच्चा सुख वही है जिसमें लेश मात्र भी आकुलता न हो। सांसारिक सुखोंमें सर्वत्र आकुलता दिखलाई देती है इस लिए उसे सञ्चा सुख नहीं माना