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छहढाला
अब ग्रन्थकार देवगतिके दुःखका वर्णन करते हैंकभी अकाम निर्जग करें, भवनत्रिक में सुरतन धरै । विषय- चाह- दावानल दह्यो, मरत दिला करत दुख सह्यो । १६ ॥ जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शनविन दुख पाय । तहंते चय थावर तन धरै यो परिवर्तन पूरे करें ॥१७॥
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अर्थ- मनुष्य पर्याय में कभी इस जीव ने अकाम-निर्जरा की, तो उसके फलसे भवनत्रिक अर्थात् भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी इन तीन प्रकारके देवोंमेंसे किसी एक जातिके देवका शरीर धारण किया। वहां पर जीवन भर तो विषयोंकी चाहरूपी दावानलमें जलता रहा, तथा मरते समय रो-रो कर विलाप किया और अत्यन्त दुःखको सहन किया । यदि कदाचित् यह जीव विमानवासी देव भी हो गया तो भी वहां सम्यग्दर्शन के विना अत्यन्त दुःख पाता है और जीवन के अन्तमें वहांसे च्युत होकर एकेन्द्रिय स्थावर शरीरको धारण किया । इस प्रकार यह जीव चतुगर्तिरूप संसार में परिभ्रमणके चक्रको पूरा किया करता है ।
विशेषार्थ – देवगति में जो जीव उत्पन्न होते हैं, उन्हें देव कहते हैं । देव चार प्रकार के होते हैं - भवन-वासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । रत्नप्रभा पृथिवीके खर भाग व पंकभाग में स्थित भवनों में रहने वाले देवों को भवनवासी कहते हैं, इनके असुंरकुमार, नागकुमार आदि १० भेद हैं । ये देव सोलह वर्षकी