________________
४२
छहढाला
है। सर्व द्रव्योंको अपने भीतर अवकाश देने वाला द्रव्य आकाश कहलाता है और समस्त पदार्थों के परिवर्तनमें जो सहायता देता है, उसे काल द्रव्य कहते हैं । इन पांचों द्रव्योंके स्वरूपको यथार्थ जानना अजीव तत्व है। मन, वचन और कायकी चंचलतासे जो कर्म-पुद्गल आत्माके भीतर आते हैं, उसे आस्रव कहते हैं। इस प्रकार आये हुए कर्म पुद्गल आत्माके प्रदेशोंके साथ मिलकर एक मेक हो बन्ध जाते हैं, उसे बंध कहते हैं। आते हुए नवीन कर्मोंके रुक जानेको संवर कहते हैं। पूर्व-संचित कर्मोंके एक देश क्षय होने या झड़नेको निर्जरा कहते हैं और आत्मासे सर्व कर्मोंके अत्यन्त क्षय हो जानेको मोक्ष कहते हैं। इन सातों तत्वोंको प्रयोजनभूत कहा है इसका कारण यह है कि जीवके संसार-निवासके प्रधान कारण आस्रव और बन्ध हैं, उनके जाने बिना संसारके परित्यागका प्रयत्न ही कैसे किया जा सकता है, इसलिए इन दोनों तत्वोंकी उपयोगिता सिद्ध है। आत्माका प्रधान लक्ष्य मोक्ष पाना है, इसलिए उसका जानना भी आवश्यक है और उसके प्रधान कारण संवर और निर्जरा हैं, क्योंकि नवीन कर्मोंका निरोध और पूर्व-संचित कर्मोंका क्षय हुए बिना मोक्ष होना संभव ही नहीं है, इसलिए संवर, निर्जरा और मोक्ष इन तीन तत्वोंका जानना प्रयोजन भूत है। संसारमें जीवका निर्वाह अजीवके बिना संभव नहीं है, अतएव अजीव तत्वका जानना भी आवश्यक है। इस प्रकार उपर्युक्त सातों तत्व जीवके लिए प्रयोजतभूत माने गये हैं ।