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छहढाला
दोनों ही प्रकारके जीव गर्भजभी होते हैं, और सम्मूर्च्छिम । जिन जीवोंका शरीर माता-पिताके रज और वीर्यके संयोगसे बनता है उन्हें गर्भज कहते हैं, जैसे गाय, भैंस, चील, कबूतर इत्यादि ।
किन्तु जिन जीवोंका शरीर माता-पिताके रज और वीर्यकी अपेक्षा के बिना इधर-उधर के परमाणुओं के मिल जानेसे उत्पन्न होता है उन्हें सम्मूर्च्छिम कहते हैं, जैसे मछली वगैरह । उक्त दोनों ही प्रकारके संज्ञी और असंज्ञी जीव जलचर- थलचर और नभचरके भेदसे तीन-तीन प्रकारके होते हैं । इन सर्व प्रकार के पंचेन्द्रिय तिर्यचोंमें जो क्रूर स्वभाववाले और बलवान् होते हैं, वे अपने से छोटे जीवोंको निर्दयतापूर्वक मारकर खाजाते हैं। और तो बात ही क्या है, इस तिर्यंच योनिमें भूखी माता भी अपने बच्चोंको खा जाती है। इसके अतिरिक्त आकाशमें निर्द्वन्द्व विहार करनेवाले पक्षी, तथा वनमें स्वच्छन्द विचरनेवाले वन्य पशु शिकारियों द्वारा अकालमें ही कालके गालमें जा पहुँचते हैं। वर्तमानके कसाईखानोंमें असंख्य मूक प्राणी प्रतिदिन तलवारके घाट उतारे जाते हैं, तथा उत्पन्न होनेके पूर्व ही अंडेकी अवस्था में असंख्य प्राणी समूचे रूपमें खालिये जाते हैं। भूख-प्यासके दुःख, बोझा ढोनेके दुःख, वधिया ( नपुंसक) करनेके महान् दुःख, सर्दी, गर्मीके सहनेके दुःख तो सर्व जगत् के प्रत्यक्ष ही हैं। अभी तक तो मांसभक्षियोंके लिए पशु मारे जाते थे, परन्तु अबतो कोमल चमड़ा प्राप्त करने के लिए गर्भ धारण करनेवाले पशु अत्यन्त निर्दयतापूर्वक मारे जाते