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पण कल्पचूर्णि वगैरहशास्त्रोंमें कहा है, इसलिये प्रथम आषाढसे८० दिन बतलाकर दो श्रावण होने पर भी भाद्रपद में८० दिने पर्युषणाकरना. या दो भाद्रपद होवे तब दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषणा ठहराना, सथा शास्त्रविरुद्ध है, इसको भी विवेकी पाठकगण स्वयंविचार लेवेंगे । १५ - देखिये यह - कैसी कुयुक्ति है ।
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कितनेक महाशय अपना असत्य आग्रहको छोड सकते नहीं तथा सत्यवातको ग्रहणभी कर सकते नहीं और व्यर्थही अपनी स चाई जमाने के लिये कहते हैं, कि "दूसरेश्रावण में या प्रथम भाद्रपद में पर्युषण पर्व करना किसी भी आगम में नहीं लिखा " ऐसी२ कुयुक्तिये करते हैं, और भद्रजीवों को संशय में गेरते हैं. मगर इतना विचार करते नहींहैं, कि ५० दिने पर्युषणापर्व करना कल्पसूत्रादि सर्वभागमों में लिखा है, यही जनाज्ञा है. देखिये - "सवसई राएमासे" वा " सविंशतिरात्रे मासे "C वा दश पंचके" वा " पचांशतैव दिनेः पर्युषणा युकेति वृद्धाः " इन सर्व वाक्योंमें ५० दिने पर्युषणा करना कहा है, सो वर्तमानमै ५० दिने दूसरेश्रावण में या प्रथम भाद्रपद में पर्युषणापर्व क रना कल्पसूत्रादि आगमानुसार ठहरता है. इससे ५० दिन कहो, या दूसरा श्रावण, प्रथम भाद्रपद कहो, दोनों एकार्थही हैं. इसलिये 'दूसरे श्रावण या प्रथम भाद्रपद में पर्युषणा करना किसी आगम में नहीं लिखा' ऐसी२ जानबुझकर कुयुक्तियें लगाकर अपना झूठा पक्ष जमानेकेलिये मायामृषा भाषण करना आत्मार्थियोंकों योग्य नहीं है. १६ - उत्सूत्र प्ररूपणा ॥
चंद्रप्रज्ञप्ति-सूर्यप्रज्ञप्ति - जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - भगवती- समवायांगादि आगम- नियुक्ति - भाष्य चूर्णि वृत्ति प्रकरणादि अनेक शास्त्रोंमें अ धिक महीने के ३० दिन गिनती में लिये हैं, वे सर्व शास्त्रोंके पाठ छुपानेसे छुप सकते नहीं. और अर्थ बदलनेसे अर्थभी बदला सकते नहीं. इसलिये कितनेक आग्रही जन कहते हैं, कि-' उन शास्त्रों में तो अधिक महीना होनें से १३ महीनोंके २६ पक्षोंके ३८३ दिनोंका अभिवर्द्धितवर्षकां स्वरूप बतलाया है, मगर१३ महीनोंको गिनती में लेनेका कहां लिखा है' ऐसा कहनेवाले प्रत्यक्ष उत्सूत्र प्ररूपणा करते हैं, क्योंकि देखो - चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ति वगैरह सर्व शास्त्रोंमें, जैसे- १ वर्ष के १२ महीनोंके २४ पक्षों के ३५४ दिनोंका स्वरूप गणित प्रमाण बतलायाहै, तैसेही अधिक महीना होनेसे उसवर्षकेभी १३ महीनोंके २६ प के ३८३ दिनोंका स्वरूप गणित प्रमाण बतलाया है, इस लिये
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