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प्रस्तावना
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पितृरेखा हो तो वह मनुष्य परमुखापेक्षी और डरपोक होता है । मातृरेखा हाथ में सरल भाव से न जाकर बुध के स्थानाभिमुखी हो तो वाणिज्य व्यवसाय में लाभ होता है । यदि यह रेखा कनिष्ठा और अनामिका के बीच की ओर आये तो शिल्प द्वारा उन्नति लाभ होता है । यह रेखा रवि के स्थान में जाय, तो शिल्पविद्यानुरागी और यशः प्रिय व्यक्ति होता है । यह रेखा भाग्यरेखा को छेदकर शनि स्थान में जाय तो मस्तक में चोट लगने से मृत्यु होती है । आयु रेखा के समीप इसके होने से श्वास रोग होता है। इस रेखा में सादे बिन्दु होने से व्यक्ति वैज्ञानिक आविष्कर्ता होता है । मातृरेखा के ऊपर यवचिह्न होने से व्यक्ति वायुरोग ग्रस्त होता है । मातृ और पितृ दोनों रेखाओं के अत्यन्त छोटे होने से शीघ्र मृत्यु होती है ।
जो रेखा करतल मूल के मध्यस्थल से उठकर साधारणतः मातृ रेखा का ऊर्ध्वदेश स्पर्श करती है, अथवा उसके निकट पहुँचती है, उसका नाम पितृरेखा है । कुछ लोग इसे आयुरेखा भी कहते हैं । यह रेखा चौड़ी और विवर्ण हो, तो मनुष्य रुग्ण, नीच स्वभाव, दुर्बल और ईर्ष्यान्वित होता है । दोनों हाथ में पितृरेखा के छोटी होने से व्यक्ति अल्पायु होता है । पितृरेखा के शृंखालाकृति होने से व्यक्ति रुग्ण और दुर्बल होता है। दो पितृरेखा होने से व्यक्ति दीर्घायु, विलासी, सुखी और किसी स्त्री के धन का उत्तराधिकारी होता है । यह रेखा शाखा विशिष्ट हो तो नसें कमजोर होती हैं । पितृरेखा से कोई शाखा चन्द्र के स्थान में जाने से मूर्खतावश अपव्यय कर व्यक्ति कष्ट में पड़ता है । यह रेखा टेढ़ी होकर चन्द्र स्थान में जाये, तो दीर्घजीवी और इस रेखा की कोई शाखा बुध के क्षेत्र में प्रविष्ट हो तो व्यवसाय में उन्नति एवं शास्त्रानुशीलन में सुख्यातिलाभ होता है । पितृरेखा में दो रेखाएँ निकलकर एक चन्द्र और दूसरी शुक्र के स्थान में जाये, तो वह मनुष्य स्वदेश का त्याग कर विदेश जाता है । चन्द्रस्थान से कोई रेखा आकर पितृरेखा को काटे, तो वह वातरोगी होता है । जिस व्यक्ति के दोनों हाथों में मातृ पितृ और आयु रेखाएँ मिल गई हों, वह व्यक्ति अकस्मात् दुरवस्था को प्राप्त करता है और उसकी मृत्यु भी किसी दुर्घटना से होती है । पितृरेखा बद्धांगुलि के निकट जाये तो व्यक्ति को सन्तान नहीं होती । पितृरेखा में छोटी-छोटी रेखाएं आकर चतुष्कोण उत्पन्न करें तो स्वजनों से विरोध होता है तथा जीवन में अनेक स्थानों पर असफलताएं मिलती हैं ।
जो सीधी रेखा पितृरेखा के मूल के समीप आरम्भ होकर मध्य मांगुलि की ओर गमन करती है, उसे ऊर्ध्वरेखा कहते हैं । जिसकी ऊर्ध्वरेखा पितृ रेखा से उठे, वह अपनी चेष्टा से सुख और सौभाग्य लाभ करता है । ऊर्ध्वरेखा हस्ततल के बीच से उठकर बुधस्थान तक जाय तो वाणिज्य व्यवसाय में, वक्तृता में या विज्ञानशास्त्र में उन्नति होती है । यह रेखा मणिबन्ध का भेदन करे तो दुःख और शोक