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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
___'गरुणी' गरुण की पत्नी है। गरुणी का वर्णन आचार्य श्री ने अपनी कल्पना शक्ति से त्रिशला रानी के वर्णन में कहा है कि, मृगनयनी त्रिशला के मुखकमल की दूर-दूर तक फैलने वाली प्रसिद्ध ग्रंथ को शीघ्र ही ग्रहण करने के लिए अतिशय काली रोमराजी रूपी गरुणी को देखकर वह भय से शरीर को संकुचित कर स्तनों के नीचे छिप गई। (च) कोकिल (कोयल)
वसन्त ऋतु में आम्रमञ्जरी के मध्य बैठी कोयल अपनी मधुर तान से किसको अपनी ओर आकर्षित नहीं करती है। कोयल का निकुञ्जों के मध्य कुञ्जन करना सर्वत्र प्रसिद्ध है। काली कलूटी होने पर भी कोयल की कूक सुनने के लिए सभी आतुर रहते हैं। कोयल की प्रथम कूक पर कृषक परिवार मिष्टान्न युक्त भोजन (खीर) बनाते हैं। कोयल की सबसे बड़ी चतुरता यह है, कि यह अपने अण्डे कौवे के घोसलें में देकर उनका पालन पोषण स्वयं न कर उसी से करवाती है। ऐसी मान्यता कृषकों की है। कोयल की कूक सुन विरही उत्तेजित हो जाता है। आचार्य श्री ने इसका वर्णन त्रिशला के गर्भावस्था में सेवा के समय किया है। जहाँ उन्होंने कहा है कि मृग समान नेत्रों वाली किसी देवी ने वीणा और कोयल से श्री श्रेष्ठ वाणी के द्वारा गायन किया
'जगौ यदप्येणविलोचना का वीणा पिकीश्रेष्ठ गिरा कथञ्चित्।
तथापि तस्याः शिवपूर्णकल्या विगायिकाया न मनो जहार॥२३ कोयल के विषय में कवि का कथन है कि, उसके मृदु एवं सुरीले गान को सिखाने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं होती वह तो स्वभावतः मृदु गीत गाती है।" अन्य जीव-जन्तु जगत (क) मत्स्य (मछली)
मछली जलीय प्राणी है। जल से इसका गहरा संबन्ध है। क्षणभर के लिए भी जल से अलग कर देने पर मत्स्य जीवित नहीं रह पाती है। प्रेम के संबंध में समाज मत्स्य का उदाहरण देते हैं कि, जिस प्रकार मछली पानी के बिना जीवित नहीं होती है। वेसे प्रेमी युगल के प्रति भी होना चाहिए। यही बात आचार्य श्री ने भी इस महाकाव्य में कहा है।
"को न अधुना पण्डितराजएव निर्गथिवाणी ग्रथितुं समर्थः।
यन्मत्स्य मात्रोऽपि सुयत्नशीलो गन्तुं न शक्नोति वनं विहाय॥ अर्थात् इस समय कौन मनुष्य पण्डितराज होने पर भी निर्दोष वाणी की रचना करने में समर्थ है ? अर्थात् कोई नहीं क्योंकि कोई भी मत्स्य यत्नशील होने पर भी जल को छोड़कर चलने में समर्थ नहीं है। इसी प्रकार त्रिशला रानी के नेत्रों की लम्बाई मत्स्य से भी लम्बी आचार्य श्री ने बताया है। आठवें स्वप्न में रानी ने मीनयुगल के दर्शन किये।" (ख) कच्छप (कछुआ) ___ 'कच्छप' की गणना भगवान् विष्णु के अवतारों में की जाती है। जिसे 'कूर्म अवतार' कहा जाता है। कच्छप की ऊपरी सतह पृष्ठभाग कठोर होती है। जिसका प्रयोग भारतीय कृषक अपने पशुओं को जादू-टोने से बचाने के लिए करते हैं। जितेन्द्रिय प्राणी को कछुए के समान ही रहना चाहिए। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सर्वविदित है कि पृथ्वी के भारत