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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
"कथञ्चिदुच्चं कृतवान् ह कार्यमुच्चो न यन्नीचजनो नृलोके। न मानसौका भवितुं समर्थः सुसूचकोऽसावपि मौक्तिकाशः।। हंस की चाल को सर्वोत्तम माना गया है जिसका वर्णन आचार्य श्री ने इस प्रकार किया है कि, त्रिशला रानी की गति हंस की गति से अधिक सुन्दर थी। रानी त्रिशला हंस के समान सुन्दर थी। हंस वर्णन का अन्य स्थल वह है, जहाँ महावीर स्वामी ने विभिन्न गुणों को स्वभावतः ही प्राप्त किया। कवि का कथन है कि, जिस प्रकार हंस के बालक को सुन्दर गति सिखाने में कोई गुरु नहीं होता, उसी प्रकार महावीर को शिक्षा देने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं थी
"नैसर्गिकज्ञाननिधेर्जिनस्य शिक्षासु को नाम गुरुर्बभूव।
मरालबालस्य विचित्रयाने न कः पिकस्यापि विशुद्धगाने।" (ग) उलूक
उल्लू पक्षी को दिन में नहीं दिखाई देता है। 'उल्लू' की समानता मूर्ख मनुष्य से ही की गई है। इसलिए आचार्य श्री ने स्पष्ट कहा कि, दुर्जन मनुष्य श्रवण करने योग्य उत्तम काव्य में भी हर्ष को प्राप्त नहीं होता। उल्लू निर्मल दिन का उदय होने पर भी प्रगाढ़ अंधकार को देखता है।
"श्रमणप्रबन्धेऽपि न याति हर्ष, सुखुल्लकोकस्य च मन्तुकोऽत्र।।
सुपेचकोऽसौ किल पश्यतीव महत्त्मः शुभ्रदिनोदयेऽपि॥२८ इस प्रकार कवि दुर्जन को उल्लू के समान बताया है।' (घ) काक (कौआ)
हिन्दू धर्मशास्त्रों में कौआ को सम्माननीय स्थान प्राप्त है। विशेष रूप से श्राद्ध पक्ष (पितर पक्ष) में कौए को 'पुरखो' की संज्ञा देकर उन्हें मिष्टान्न दिया जाता हैं रामचरितमानस में तुलसीदास ने 'काकभुसुण्डि' का वर्णन किया है। काले रंग वाला कौआ देखने में सुन्दर तो दिखाई देता है किन्तु उसकी वाणी अत्यन्त कर्कश होती है। अपनी कॉव-कॉव की आवाज के द्वारा वह लोगों के लिए उपेक्षणीय हो जाता है। आचार्य श्री ने कौए की तुलना नीच पुरुष से की है और उन्होंने कहा है कि कौआ किसी तरह मुक्ताफल भोजी भी हो जावे परन्तु वह हंस नहीं हो सकता।" (ङ) गरुण एवं गरुणी __'गरुण' पक्षी भगवान विष्णु' का वाहन बताया गया है। वह श्येन (बाझ) परिवार का सदस्य है। वह अत्यन्त भयंकर होता है। गरुण एवं सर्प एक दूसरे के परस्पर बैरी हैं। यही कारण था कि राम एवं लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करने के लिए स्वयं गरुण पक्षी ने ही भूतल पर पदार्पण किया। संस्कृत काव्यकारों ने इसका सुन्दर वर्णन किया है। आचार्य श्री ने इसका उपयोग रानी त्रिशला द्वारा किये गये दसवें स्वप्न में किया है रानी त्रिशला ने जो सरोवर देखा वह असंख्य गरुण पक्षियों की क्रीड़ा से युक्त था।
'पद्मालयं कोकनिवासरम्यमसंख्यहेमांग विलासगम्यम्। अनल्पशुभ्रमृतपूरपूर्ण स्वर्लोकवद्धा परमं तडागम्॥२९