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वर्ष १४]
हमारी प्राचीन विस्मृत वैभव
कलापूर्ण प्रतिविम्ब अाज भी कला प्रेमी और संस्कृति है और किसीका लिङ्गस्थान नष्ट कर दिया गया है। इतनी प्रेमियोंको आकर्षित करते हैं तथा भारतके गौरवपूर्ण सांस्कृ- सुन्दर मूर्तियोंकी इस खण्डिनावस्थाको देखकर जहां दुख तिक इतिहासके निर्माणमें असाधारण मूक सहायता होता है वहां धार्मिक उन्मादके भी दर्शन होते हैं।
पता नहीं, ये विशाल मन्दिर व उनकी मूर्तियां कब, किनके पटनागंजका भव्य स्थान भी ऐसा ही है जो सोन नदी द्वारा खण्डित की गई हैं और कबसे अरक्षित दशामें पड़ी के निकट वसा हुश्रा अपने अतीतके हर्षपूर्ण दिवसोंकी स्मृति हुई है। दिला रहा है। पाश्चर्य नहीं कि हम भव्य स्थानके चारों इनका यहां कुछ परिचय दिया जाता है :श्रोर हजारोंकी संख्यामें जनोंका निवास रहा हो और वे सब मन्दिर नं०१ (पहाड़ पर) तरह धन-धान्यसे भरपूर हों। यहां जो लेख हैं उनके
___ इसमें शान्ति, कुन्थु और अर इन तीन नीर्थकरोंकी बदगाप्रकाशमें आने से व्यक्तियों, जातियों और अनेक गोत्रोंके
सन भूर्तियां हैं । शान्तिनाथकी मूनि १० फुट, कुन्थुनायकी सम्बन्धमें अच्छा प्रकाश पड़ सकता है। सिर्फ अावश्यकता
5 फुट और अरनाथकी मूर्नि ७ फुट है। सिर्फ नासिका व उस ओर ध्यान देने की हैं।
लिङ्ग भङ्ग है और सब सर्वाङ्ग मुन्दर है। एक शिलालेग्व श्री अतिशय क्षेत्र मदनपुर
है, जो साधन न होने से पढा नहीं गया। सिर्फ संवत् पढ़ा ____ इन्हीं दिनों हमें एक दूसरा अतिशय क्षेत्र मदनपुर भी, गया जो १११० है । जो सागर व ललितपुर मध्यमें सागर-मदनपुर-महावरा मन्दिर नं. २ (पहाड़ पर) रोडपर अवस्थित है, दग्बनेका सुअवसर मिला। इसका श्रेय यह मन्दिर उक्र मन्दिर नं.१ के पास ही है। इसमें सौरई (ललितपुर) के जैन बन्धुओंको है, जो पिछले कई
लालतपुर) के जन बन्धुबाका है, जो पिछले कई भी उन तीनों तीर्थकरोंकी बड़गायन मूर्तियां विरानमान हैं वर्षसे प्रेरणा कर रहे थे और हमने तथा सुहृवर पं० जो क्रमशः ८, ६, ६ फुट हैं। यहां भी शिलालेख है। परमानन्दजी शास्त्रीने उद्धार करनेका एक-दो बार निश्चय
ने उद्धार करनेका एक-दो बार निश्चय सिर्फ संवत् पढ़ा गया जो १२०४ है। मूर्तियोंमें सिर्फ भी किया था, पर जानेका योग्य नहीं मिल सका था। इस
शान्तिनाथकी मूर्तिका हाथ टूटा हुआ है। शंप दोनों टीक मनोज्ञ स्थान पर भी जो एक छोटी एवं थोडी ऊंची पहाड़ी मतियां बहत मनोज हैं. इन दोनों मन्दिरक पर है, हमाग धार्मिक वैभव दीन हीन अवस्थामें पड़ा हुधा अोर परकोटा बना हृया है जो नोड़ दिया गया है। बहुत है। हम 'दीन-हीन अवस्था' इसलिये कह रहे है कि वस्तुनः
सुंदर बना मालूम होता है। इस सुन्दर एवं प्राचीन गौरवपूर्ण स्थानकी ओर समाजका
" मन्दिर नं. ३ (पहाड़ पर) शताब्दियोस लक्ष्य नहीं गया। सं० १११०से लेकर मं० १६१८ तकके तीन विशाल मन्दिर पहाडपर विद्यमान हैं यह मंदिर उक्त दोनों मंदिरों से कुछ दूर सामने बना और पांच मदियां (मन्दिर), जो पंचमढ़ियोंके नामसे विश्र त हुआ है। बीचमें जगलके वृक्षोंसे व्यवधान होगया है। हैं, पहाडके नीचे हैं, पर दहलाने तोड़ डाली गई हैं, जिनका इसमें भी उन तीनों तीर्थंकरोंकी मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं और कलापूर्ण एवं सुन्दर पत्थर पास-पास चारों ओर विश्वरा पड़ा खड्गापन ही हैं। शांतिनाथकी मूर्ति फुट, कुन्थुनाथको है और बहुत कुछ आस-पासके लोग अपने मकानोंके ७ फुट और अरनाथकी ७ फुट ऊँची है। इनमें सबके हाथ दिये उठा ले गये हैं। इन पत्थरोंकी कला एवं बनावट वगैरह ठीक है सिर्फ नासिका खंडित है । यहां भी शिलालेख देवकर १०वी, ११वी व १२वीं शताब्दीकी मति एवं मंदिर है जो नहीं पढ़ा जासका । संवत् १६८८ की ये प्रतिष्ठित निर्माण कलाका स्मरण हो पाता है।
हैं। इस मन्दिरके चारों ओर चार दहलाने हैं और चारों में
कोटों पर मूर्तियां विराजमान हैं । हो, एकमें लुप्त है। मालूम इन मन्दिरों तथा पंचमड़ियों में सब जगह शान्ति, कुन्थु और इन तीन तीर्थंकरोंकी विशाल उत्तग खड़गासन
होता है कि किमीन उसे तोड फोड़कर अन्यत्र फेंक दी है। मूर्तियां प्रनिष्ठत हैं, जो अधिकांश खण्डितावस्थामें हैं। मन्दिर नं. ४ (पहाड़ोंके नीचे पंचमढ़ी) .किसीकी नासिका भंग कर दीगई है, किसीका हाथ टूटा हुआ इसमें पांच मढ़ियां बनी हुई हैं । और चारों ओर चार