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३. हत्या और मृत्युदण्ड में कोई संगति नहीं
मृत्यु एक परिवर्तन है
जीवन और मरण-इन दो शब्दों की परिधि में विश्व का सारा प्रपंच समाया हुआ है । जीवन एक उल्लास का सूचक है और मृत्यु अवसाद का । सचाई यही है, नहीं कहा जा सकता । यह मानी हुई सचाई जरूर है । मृत्यु एक प्रसाद हो सकती है और जीवन अवसाद । मैं बहुमत की सचाई को उलटने का प्रयत्न नहीं कर रहा हूं । जो यथार्थ है, उसे अभिव्यक्ति देना आवश्यक है । मृत्यु अवसाद है उन लोगों के लिए, जो अभी जीवित है । जो उसका . वरण कर रहा है, उसके लिए अवसाद नहीं है । उसके लिए वह केवल एक परिवर्तन है।
सेना में अनिवार्य भर्ती हो रही थी । एक व्यक्ति से पूछा गया- क्या तुम्हें रण-भूमि में जाने का डर नहीं लग रहा है ?
वह बोला मुझे क्यों डर लगे ? अभी मेरी भर्ती ही नहीं हुई है । मेरा नम्बर ही नहीं आया है।
नम्बर आ जाएगा तो ? नम्बर आएगा तो क्या पता मुझे मोर्चे पर भेजेंगे या नहीं भेजेंगे । यदि भेज दिया तो ? क्या पता मैं अग्रिम पंक्ति में रहूंगा या नहीं । यदि अग्रिम पंक्ति में रहे तो ? क्या पता गोली लगेगी या नहीं यदि लग गई तो ? तो फिर डर किसको होगा ?
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