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१४. कृत्रिम में अकृत्रिम की खोज
जापान के डॉक्टर के० जी० होंडा कृत्रिम रक्त बनाने में सफल हो गए हैं । यह सूचना आश्चर्यजनक है किन्तु कृत्रिम अवयवों के निर्माण, नई प्रजातियों के विकास के युग में चौंकाने वाली नहीं है | आदमी दांतों से सुन सकेगा । लेन्स का प्रयोग कर मोतियाबिंद से दृष्टिहीन बना हुआ आदमी दृष्टि पा जाएगा। चिकित्सा और जीवविज्ञान के क्षेत्र में बड़ी तेजी के साथ परिवर्तन हो रहे हैं। उन परिवर्तनों ने अनेक नये प्रश्न पैदा किए हैं । इक्कीसवीं शताब्दी का प्रभात इन प्रश्नों की अस्फुट आभा से प्रद्योतित रहेगा ।
धर्म और विज्ञान
जेनेटिक अनुसंधानों में लगे वैज्ञानिक जीवाणुओं की नयी सृष्टि करने में लगे हुए हैं । कुछ विषपायी जीवाणु तैयार कर लिए गए हैं । पेट्रोल खाने वाले जीवाणु समुद्र की सतह पर फैले पैट्रोल को खा जाते हैं और जल तेल रहित हो जाता है । गंधक खाने वाले जीवाणु गंधक को खाकर हवा को स्वच्छ बना देते हैं । नयी सृष्टि का निर्माण उतना आश्चर्यजनक नहीं है जितना आश्चर्यजनक है मनचाही संतान पैदा करने का प्रयल । बौद्धिक, वैज्ञानिक या व्यावसायिक प्रतिभासंपन्न अथवा शल्यचिकित्सा में दक्ष संतान पैदा की जा सकेगी। क्या चरित्र संपन्न संतान भी पैदा की जा सकेगी ? यदि ऐसा होगा तो फिर विश्व को युद्ध, शस्त्रीकरण, आतंकवाद, अपराध और अनुशासनहीनता के संकट से मुक्ति मिल जाएगी । धर्म का उपदेश मनुष्य को चरित्रवान बनाने में बहुत सफल नहीं रहा । इतने धार्मिक उपदेशों के उपरांत भी विश्व में युद्ध से लेकर अनुशासनहीनता तक के दौर चल रहे हैं । यदि विज्ञान धर्म के इस दायित्व
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