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१८४ आमंत्रण आरोग्य को
नहीं कर पाते, समस्या पैदा हो जाती है । एक सम्पन्न एवं समृद्ध परिवार के कुछ युवकों के मन में आया, परिवार के बुजुर्गों/मुखिया लोगों की बार-बार हाजरी लगानी पड़ती है, उन्हें कई-कई बार पानी पिलाना पड़ता है, छोटी-छोटी बातों के लिए भी उनसे पूछना पड़ता है । ऐसा क्यों ? आखिर हम सभी तो भागीदार हैं, हिस्सेदार हैं, हम ऐसा क्यों करें ? युवकों ने निश्चय किया-बंटवारा कर लें । लोगों ने बहुत समझाया-बहुत पुरानी और प्रतिष्ठित फर्म है, इसे तोड़ना ठीक नहीं है । युवकों ने उनका कथन नहीं माना | फर्म टूट गई । टूटने के बाद युवकों की स्थिति दयनीय बन गई । जो मुखिया थे, उन्होंने अपनी व्यापारिक स्थिति फिर मजबूत कर ली । उनमें कमाने की क्षमता थी । जिन लोगों के मन में यह भाव था—हम इनकी हाजरी क्यों भरें ? उनके सामने एक समय ऐसा आया, रोजी-रोटी का इंतजाम भी उनके लिए कठिन हो गया । यदि वे युवक थोड़ा-सा सामंजस्य बिठा लेते तो शायद यह स्थिति न बनती । सात्विक व्यक्ति का लक्षण
यह सामंजस्य तब तक नहीं बैठता जब तक हम प्रकृति विश्लेषण की प्रक्रिया को नहीं जान लेते । सात्त्विक, राजसिक, तामसिक—यह पूरा प्रकृति विश्लेषण का विषय है । इन लक्षणों से जान सकते हैं-इस आदमी में किस प्रकार की वृत्ति या प्रकृति है। यदि व्यक्ति में विनम्रता है, सत्यनिष्ठा है, आस्तिक्य है, धृति है, संविभाग का भाव है, तितिक्षा है तो समझना चाहिए-वह सात्त्विक प्रकृति का आदमी है । परिवार में जो मुखिया है, उसे उसके साथ वैसा व्यवहार करना चाहिए और वैसा ही कार्य या दायित्व उसे सौंपना होता है । यदि ऐसा होता है तो काम ठीक चलता है । यह पता चल जाए—इस व्यक्ति में धृति नहीं है तो उस पर बलात् नियंत्रण कारगर सिद्ध नहीं होगा । अधैर्य है तो ज्यादा कसना ठीक नहीं । मारवाड़ी का एक प्रसिद्ध दोहा है
कांच कथीर अधीर नर, कस्यां न उपजै प्रेम ।
कसनी तो धीरा सहै, के हीरा कै हेम । हीरे और सोने को जितना अधिक कसा जाता है उतना ही वह अधिक विशुद्ध बनता है । उसे कितनी ही चोटें सहनी पड़ती हैं । इतनी ही चोट कांच पर लगा दें तो वह चूर-चूर हो जाए । वैसे ही जो व्यक्ति अधीर है, यदि उसे ज्यादा कस देंगे तो दो ही बातें होंगी-या तो वह घर छोड़कर कहीं भाग जाएगा या आत्महत्या कर लेगा ।
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